महिलाओं को के काम को समान मूल्य प्रदान करने के लिए किस स्तर पर क्या कार्य किया किया जाना चाहिए
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महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण समावेशी आर्थिक विकास के केंद्र में है और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजीज़) को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है। दुनिया की प्रत्येक महिला और बालिका की समानता सुनिश्चित करने वाले परिवर्तनकारी उपायो को एसडीजीज़ ऐतिहासिक मंच प्रदान करते हैं। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु निवेश करने से लैंगिक समानता, गरीबी उन्मूलन और समावेशी आर्थिक वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। लेकिन अर्थव्यवस्था में महिलाओं और बालिकाओं को समाहित करने और कार्यस्थलों एवं सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ महिलाओं और बालिकाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने की भी जरूरत है। साथ ही समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी और उनके स्वास्थ्य एवं संपन्नता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
भारत में युवाओं की संख्या बहुत अधिक है। हर तीन में एक व्यक्ति युवा है, यानी 15 से 24 वर्ष के बीच, और देश की जनसंख्या में बच्चों की संख्या 37% के करीब है। 2020 तक देश की औसत आयु 29 वर्ष होगी। भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं और एसडीजीज़ की उपलब्धियां बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि युवाओं में कौशल, ऊर्जा और सफलता की कितनी इच्छा है तथा क्या नेतृत्व, भागीदारी और स्वेच्छा को पोषित करने वाली प्रभावशाली प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं। एसडीजीज़ के 169 उद्देश्यों में से 65 में स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से युवाओं का उल्लेख है और ये उद्देश्य सशक्तीकरण, भागीदारिता और जन कल्याण पर केंद्रित हैं। उचित अवसर मिलने पर युवा वर्ग देश का सामाजिक और आर्थिक भाग्य बदल सकता है। लेकिन इस परिवर्तन के लिए सतत निवेश और भागीदारी की जरूरत है, साथ ही युवाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से काम करना भी। युवाओं का मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए और जिन क्षेत्रों का प्रत्यक्ष प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ने वाला है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों से संबंधित फैसलों में उन्हें सहभागी बनाया जाना चाहिए।
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