Hindi, asked by Sristi6031, 1 year ago

महिल|ओ के साथ छेडछ| पर


sneha1196: aur

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Answered by himanshu3361
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आगे क्या है????????????????
Answered by afreen786n
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महिलाओं से छेड़छाड़ भारत  में और कभी-कभी पाकिस्तान  और बांग्लादेश में पुरुषों द्वारा महिलाओं के सार्वजनिक यौन उत्पीड़न, सड़कों पर परेशान करने या छेड़खानियों के लिए प्रयुक्त व्यंजना है, जिसके अंग्रेज़ी पर्याय ईव टीज़िंग में ईवशब्द बाइबिलीय संदर्भ में प्रयुक्त होता है।

यौन संबंधी इस छेड़छाड़ की गंभीरता, जिसे युवाओं में अपचार से संबंधित समस्या के रूप में देखा जाता है, वासनापरक सांकेतिक टिप्पणियां कसने, सार्वजनिक स्थानों में छूकर निकलने, सीटी बजाने से लेकर स्पष्ट रूप से जिस्म टटोलने तक विस्तृत है।कभी-कभी इसे निर्दोष मज़े के विनीत संकेत के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिससे यह अहानिकर  प्रतीत होता है जिसका अपराधी पर कोई परिणामी दायित्व नहीं बनता है। कई नारीवादियों और स्वैच्छिक संगठनों ने सुझाव दिया है कि इस अभिव्यंजना को और अधिक उपयुक्त शब्द द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए. उनके अनुसार, भारतीय अंग्रेज़ी भाषा में शब्द ईव-टीज़िंग के अर्थगत मूल पर विचार करने से यह स्त्री की लुभाने वाली प्रकृति को इंगित करता है, जहां मोहने का दायित्व महिला पर ठहरता है, मानो पुरुषों की छेड़छाड़पूर्ण प्रतिक्रिया अपराधमूलक होने के बजाय स्वाभाविक है।

महिलाओं के साथ छेड़छाड़ ऐसा अपराध है जिसे प्रमाणित करना बेहद मुश्किल है, चूंकि अपराधी अक्सर महिलाओं पर हमले के सरल तरीक़े ढूंढ़ लेते हैं, हालांकि कई नारीवादी लेखकों ने इसे "छोटे बलात्कार" का नाम दिया है, और सामान्यतः यह सार्वजनिक स्थलों, सड़कों और सार्वजनिक वाहनों में घटित होता है।

इसके संबंध में कुछ मार्गदर्शक पुस्तिकाओं में महिला पर्यटकों को सुझाव दिया जाता है कि रूढ़िवादी कपड़े पहनने से छेड़खानियों से बचा जा सकता है, हालांकि भारतीय महिला और रूढ़िवादी पोशाक पहनने वाली विदेशी महिलाएं, दोनों ने छेड़छाड़ की रिपोर्टें दर्ज करवाई हैं।

यह जरुरी नहीं की महिला उत्पीड़न सिर्फ देर शाम या रात्रि में ही हो बल्कि घर पर किसी परिजन के द्वारा या दफ्तर में साथ काम करने वाले सहभागी द्वारा भी ऐसे चकित करने वाले मामले उजागर हुए है। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा किये गए सर्वे में यह पाया गया की इन बढ़ते अपराधों पीछे मुख्य कारण था काम करने वाली जगह में आपसी सहयोग की कमी, ना के बराबर पुलिस सेवा, खुलेआम शराब का सेवन, नशे की लत एवं शौचालयों की कमी।

अब अगर महिलाओं की बात की जाए तो उनकी संख्या का एक बड़ा हिस्सा इस तर्क पर ना के बराबर विश्वास करता है की पुलिस इन बढ़ते हुए अपराधों पर लगाम लगा पाएगी। इसलिए इस तरफ अब ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे महिला अपराध के बढ़ते मामलों पर काबू पाया जा सके और महिलाएं भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हुए पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर देश को विकसित एवं समृद्ध बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान



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