महामारी के दौरान मजदूर की आत्मकथा
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कोरोना वायरस के कारण देश में 14 अप्रैल तक हुए लॉकडाउन के कारण देश के बड़े व छोटे शहरों से हजारों की संख्या में पलायन शुरू हो गया है। केंद्र सरकार ने एक बार नहीं कई बार लोगों से अपील की है कि वह जहां है कुछ सप्ताह के लिए वहीं रहें। समस्या यह है कि वह मजदूर जो सूर्य उदय के साथ शहरों में दिहाड़ी कर शाम को अपने तथा अपने परिवार की रोटी का जुगाड़ करता था वह कहां जाए। लॉकडाउन के कारण सारा कामकाज ठप है। व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। दिहाड़ीदार मजदूर जो छोटे-मोटे उद्योगों, दुकानों व ढाबों पर कार्य करते थे उनके पास भी कुछ करने को नहीं है। उनके हाथ में काम नहीं पेट खाली और ऊपर से कोरोना का डर ऐसे में मजदूर के पास शहरों से पलायन कर अपने गांव वापस जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। केंद्र सरकार ने पलायन को मजबूर मजदूरों की कठिनाईयों को देखते हुए राज्य सरकारों और केन्द्र प्रशासित प्रदेशों को आदेश दिए हैं कि 21 दिवसीय पूर्ण बंद को देखते हुए वह बंदी के कारण प्रवासी मजदूरों को भोजन व आश्रम का प्रबंध करें। इस के लिए वह आपदा राहत कोष का इस्तेमाल कर सकते हैं। शहरों से मजदूरों के पलायन का एक कारण कोरोना तो दूसरा बड़ा कारण भूख है। काम न होने के कारण उनको पेट भर खाना मिलना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसी स्थिति में उन के पास एक ही विकल्प है घर वापसी। घर पहुंचना कैसे है इस बात को दरकिनारे कर के हजारों की संख्या में पुरूष, महिला, बजुर्ग समेत सड़कों पर निकल पड़े हैं। जिस संख्या में वह सड़कों पर है उससे कोरोना वायरस के बढऩे का खतरा अधिक हो गया है। इस खतरे को भांपते हुए कई प्रदेशों ने तो अपने बार्डर सील कर दिए हैं। लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है।
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