Hindi, asked by ashishoptician, 11 months ago

महीनो के बदलते क्रम से प्रकृति का परिवर्तन कैसे​

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Answered by educatorvs
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परिवर्तन प्रकृति का नियम है , इसे हमें मानना होगा।  हमें समझना पड़ेगा क्या है यह नियम।  जैसे हमारे भारत में छ मौसम है , इसी तरह सारे दुनिया में भी कई मौसम है ,  जब गर्मी सुरु होती है तो धीरे धीरे गर्मी लगती है और कभी कभी अचानक भी बहुत गर्मी पड़ती है।  अगर इस गर्मी में हम धीरज न धरके सयंम खो बैठे तो हमें ही तकलीफ होगी।  साथ में साथ में रहनेवाले को भी।  अगर हम इस गर्मी को मान ले और धीरज पूर्वक मन को संतुलित करके उपयुक्त व्यवस्था करे और उसको अपनाये , तो हमें आराम मिलेगा और मन की शांति भी मिलेगी।  कियुकी वषंत ऋतू के बाद गर्मी का मौसम का आना अनिवार्य है।  यह प्रकृति का नियम है।  इसमें हमारी कोई नहीं चलेगी।  हम लाखो कौशिश करके भी कुछ नहीं कर सकते है।  गर्मी को अपने हिसाब से बदल नहीं सकते है।  वषंत ऋतू के बाद को गर्मी का मौसम आना ही है।  हम ज्यादा से ज्यादा घर में पंखा या एयर कंडीशनर लगा सकते है, मगर गर्मी को बदल नहीं सकते है।  सबसे पहले हमें उस गर्मी को या उस परिवर्तन को स्वीकार करना होगा , क्युकी वो हमारे हाथ में नहीं है।  अगर हम इस गर्मी को वर्दास्त नहीं कर पाये तो बीमार पड़ जाएंगे।

जितना ज्यादा हम उसे ना स्वीकार करने का प्रयास करेंगे उतना ज्यादा तकलीफ पायेंगे।  क्युकी तकलीफ पहले मन को होता है उसके बाद शरीर को होता है।  हमारी सहन शक्ति को बढ़ाने की जरुरत पड़ेगी।   तो पहेले स्वीकार करना होगा उसके बाद मन का संतुलन को  सम्भालना होगा फिर धैर्य रख के उस का व्यवस्था करना पड़ेगा।   यही हाल सब ऋतू की है। कियुकी मौसम बदलना प्रकृति का स्वाभाव है।  जो की परमात्मा के नियम के आधार पर  है।    यही हाल हमारे जीवन में भी देखा जाता है।  मनुष्य के जीवन में भी कई परिवर्तन आते है , जनम से शिशु अवस्था , शैशव से किशोर अवस्था, किशोर से यौवन अवस्था , यौवन से प्रौढ़ अवस्था। इसके इलावा भी सादी, नौकरी , स्थान परिवर्तन वगेरा बहुत सारे परिवर्तन हमारे जीवन में आते है।  सुख भी आते है दुःख भी होते है।   मगर हम मनुष्य इस परिवर्तन के हर परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पाते है क्युकी हर परिवर्तन हमारा मन चाहा नहीं होता।  हम चाहते कुछ और होता है कुछ और।   ज्यादातर देखा गया है इस परिवर्तन को नहीं स्वीकार लेने के कारण हम दुखी हो जाते है।  मन की संतुलन खो बैठते है।  और इसके कारण हम कभी कभी गलत कदम उठा लेते है।  कभी कभी तो जान लेवा कदम भी उठा लेते है।  अगर इस परिवर्तन को हम परमात्मा का दिया हुआ वरदान समझ लें और इसमें कोई नयी आशा नयी दिशा को तलाश करे तो सायद हमें कोई नयी मार्ग जो हो सकता है पहले से ज्यादा बेतहर हो।   हमारे ऋषि मुनि के द्वारा किये गए शोध से यह पाता  चलता है , परमात्मा के दिया हुआ हर परिवर्तन में कोई न कोई अच्छी दिशा , अच्छी और नयी सन्देश निहित होता है।

 सिर्फ हमारा सोच हमारा विचार हमारा असंतुलन मन , भटकता हुआ मन हमें भ्रम में डाल देता और गलत कदम उठाने में मज़बूर कर देता है।   अगर हम पृथिबी के भौगालिक मानचित्र को देखे इसकी वायु की गतिविधि को , और समझ ने की कौशिश करें तो हमें मालुम पड़ेगा , यह जो तरह तरह का प्रचंड तूफ़ान, आंधी का कारण  भी मालुम पड़ेगा।  कियु होता है यह ? मतलब हर घटना का परिवर्तन का कुछ तो कारण  है और वो जब घटित होता है , उस समय उस परिवर्तन का बागडोर हमारे हाथ  नहीं होता है।   वैसे भी परिवर्तन एक नयी ताज़गी लती है ,  थकाने वाली नीरस ढंग से चलने वाला जीवन शैली को भी एक नयी दिशा भी मिलता है।  हम अगर इस परिवर्तन को समझ सके और इसे परमात्मा का दिया हुआ वरदान समझ सके तो समझ में आएगा हमारे साथ जो  भी  दुखद स्थिति अतीत हुआ था वे सब उन परमात्मा की कृपा के सिवा और  कुछ नहीं . कियुकी वे बड़े ही  कृपालु है, दयालु है, उनसे हमारा दुःख देखा नहीं जाता।  वे परिवर्तन के जरिये नए दिशा नए मार्ग चुनने  के लिये  निर्देश देते  है,  नयी सोच नयी विचारधारा के साथ  जीवन  शैली  को बदल ने के प्रेरित करते  है।   इसीलिए हर परिवर्तन में धीरज, हौशला, मानसिक और  वैचारिक संतुलन के साथ एक प्रेरक तत्व का होना जरुरी होता है जीने  हम  सतगुरु के नाम से जानते है।   वे हमें प्रेरित करते रहते है उचित समय पर उचित कदम उठाने  के  लिए।   

हमने देखा है कोई भी पेड़ की लकड़ी कितना भी महँगा क्यूँ माँ हो अगर वो सीजन नहीं करके इस्तेमाल करते है तो वो लकड़ी गर्मी में सिकोड़ जाता है और वर्षात के आने पड़ फ़ैल जाता है।  मतलब लकड़ी को सब मौसम का अबगत करके उसकी कठिनाई को झेलने  के बाद हम इस्तेमाल करे तब वो लकड़ी हर मौसम पे सीधा रहता है। उस लकड़ी को कृतविम या  साधारण  प्रक्रिया से हर मौसम को सहन जाता है।  यह सब प्रकृति का नियम है जो हमने प्रकृति से सीखा है।    

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MARK AS BRAINLIEST PLZ

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