महानगरों ने बच्चों का बचपन छीन कैसे लिया है?
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आज के तकनीकी युग में बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना मुमकिन नहीं है, लेकिन विभिन्न अध्ययनों में साबित हुआ है कि भिन्न गैजेट्स बच्चों को अलग-अलग तरीके से नुकसान पहुंचाते हैं...
हाईटेक होते जमाने में जहां हर चीज मोबाइल ऐप पर उपलब्ध होती जा रही है, ऐसे में बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं है। उन्हें इन चीजों की जानकाारी होना भी समय की मांग है। हां, इसके नुकसानों को देखते हुए इनके इस्तेमाल की समयसीमा जरूर तय की जा सकती है। आपने देखा होगा माता-पिता की जागरूकता के बावजूद आज दो साल के बच्चे भी टच स्क्रीन फोन चलाना, स्वाइप करना, लॉक खोलना और कैमरे पर फोटो खींचना जानते हैं। एक नए शोध (82 प्रश्नावली के आधार पर) के अनुसार, 87 प्रतिशत अभिभावक प्रतिदिन औसतन 15 मिनट अपने बच्चों को स्मार्टफोन खेलने के लिए देते हैं, जबकि 62 फीसदी ने बताया कि वे अपने बच्चों के लिए ऐप्स डाउनलोड करते हैं। स्मार्टफोन के मालिक हर १० में से 9 अभिभावकों ने बताया कि उनके नन्हें-मुन्ने फोन स्वाइप करना जानते हैं, 10 में से 5 ने बताया कि उनके बच्चे फोन को अनलॉक कर सकते हैं, जबकि कुछ अभिभावकों ने माना कि उनके बच्चे फोन के अन्य फीचर भी ढूंढ़ते हैं। मनोवैज्ञानिकों की मानें, तो पिछले 3 वर्षों में तकनीक पर आश्रित लोगों की संख्या 30 गुना बढ़ गई है।
अधिक उपयोग का असर...
माइकल कोहेन ग्रुप की ओर से किए गए एक शोध से पता चला कि टीनएजर्स गैजेट्स से खेलना ज्यादा पसंद करते हैं। गैजेट्स लेकर दिनभर बैठे रहने के कारण उनमें मोटापे की समस्या बढ़ रही है। साथ ही आईपैड, लैपटॉप, मोबाइल आदि पर बिजी रहने के कारण वो समय पर सो भी नहीं पाते, जिससे उन्हें शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। गैजेट के अधिक इस्तेमाल से बच्चों में व्यग्रता, उत्कंठा, अवसाद, आत्मकेंद्रित, मनोरोग व अन्य समस्याएं हो रही हैं।
क्या हो समय सीमा?
अमरीकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की स्टडी के अनुसार- दो साल से कम आयु के बच्चों को किसी भी तरह की स्क्रीन से दूर रखना चाहिए। तीन से पांच वर्ष के बच्चे एक घंटा और टीनएज बच्चों को केवल 30 मिनट प्रतिदिन तक गैजेट इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए।
ये हैं दुष्प्रभाव...
हाल ही में हुए अध्ययनों में सामने आया है कि टेक्नोलॉजी हमारे बच्चों को फायदा पहुंचाने की बजाए लांग-टर्म में नुकसान पहुंचा रही है।
दिमाग पर आसर... विकसित हो रहे दिमाग पर टेक्नोलॉजी के ओवरएक्सपोजर से बच्चों में सीखने की क्षमता में बदलाव, ध्यान न लगना, भोजन ठीक से न करना, आंखें खराब होना, हायपरएक्टीविटी और स्वयं को अनुशासित व नियमित न रख पाने की समस्याएं पैदा होने लगी हैं।
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