Hindi, asked by pravinritish, 19 days ago

महाराजा रणजीत सिंह कैसे राजा थे​

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Answered by sonysony28050
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Answer:

महाराजा रणजीत सिंह और अफ़ग़ानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गयी थी।[4]

महाराजा रणजीत सिंह

RanjitSingh by ManuSaluja.jpg

महाराजा रणजीत सिंह 'सांसी'

शासनावधि

12 अप्रैल 1801 – 27 जून 1839

राज्याभिषेक

12 अप्रैल 1801,

उत्तरवर्ती

महाराजा खड़क सिंह

जन्म

ਬੁਧ ਸਿੰਘ, بدھ سنگھ

बुध सिंह

13 नवंबर 1780[1]

गुजरांवाला, सुकरचकिया मिस्ल

निधन

27 जून 1839 (उम्र 58)

लाहौर, पंजाब, सिख साम्राज्य (आज के पाकिस्तान में)

समाधि

अस्थि अवशेष लाहौर में सुरक्षित

संतान

खड़क सिंह, ईशर सिंह, शेर सिंह, तारा सिंह, कश्मीरा सिंह, पेशौरा सिंह, मुल्ताना सिंह, दलीप सिंह

घराना

[[सांसी ]], सिक्ख[2][3]

पिता

महाराजा महा सिंह

माता

राज कौर

धर्म

सिक्ख

महाराजा रणजीत ने अफ़ग़ानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौक़ा था जब पश्तूनों पर किसी ग़ैर-मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया। पहली आधुनिक भारतीय सेना - "सिख ख़ालसा सेना" गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। इसी ताक़तवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक ऐसा मौक़ा भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेजों का क़ब्ज़ा नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक़, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया।

उन्होंने पंजाब में क़ानून एवं व्यवस्था क़ायम की और कभी भी किसी को मृत्युदण्ड नहीं दिया।[6] उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले जज़िया पर भी रोक लगाई। कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।

बेशक़ीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के ख़ज़ाने की रौनक था। सन् 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां क़ायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 के दिन पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुज़ूर में पेश कर दिया गया।

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