Hindi, asked by sampada6114, 1 year ago

महाराजा सुहेलदेव राजभर का इतिहास। Maharaja Suheldev History in Hindi

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Answered by Stylishhh
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बच्चों! आप लोगों ने बहराइच जनपद का नाम सुना होगा। धार्मिक क्षेत्र में बहराइच का महत्त्वपूर्ण स्थान है। महर्षि अष्टावक्र, भगवान बुद्ध आदि की यह तपस्थली रही है। अहिंसा के अवतार भगवान बुद्ध यहीं जेतवन में कई वर्षों तक वर्षा ऋतु के चौमासे व्यतीत करने आते थे। हिंसा का प्रतीक, जनता को अपने लूट-मार और आतंक से भयभीत करने वाला कुख्यात डाकू अंगुलिमाल, यहीं जालिनी वन में रहता था। भगवान बुद्ध ने यहीं उसे अहिंसा धर्म में दीक्षित किया था।

भारत-नेपाल सीमा के निकट बहराइच जनपद में बाबागंज रेलवे स्टेशन से तीन किमी0 की दूरी पर चरदा के प्रसिद्ध किले का ध्वंसावशेष उस ओर आने वाले यात्रियों के मस्तिष्क में अपनी मूक भाषा की एक करुण स्मृति भर देता है। वर्षों पूर्व यहाँ एक राजा का शासन था। उनका नाम सुहेलदेव था। उन्हें सुहिरिध्वज भी कहा जाता है जो कि मोरध्वज, मकरिध्वज आदि क्षत्रिय राजाओं के नाम से मिलता जुलता है। अलग-अलग इतिहासकार राजा सुहेलदेव को भर, थारु अथवा राजपूत जाति का मानते थे। चरदा की डीह राजा सुहेलदेव का किला माना जाता है।

गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी का नवासा सैयद सालार मसूद गाजी ने पंजाब से बहराइच तक जब अपनी विजय पताका फहरायी उस समय बहराइच के इसी नरेश महाराजा सुहेलदेव ने छोटे-छोटे पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना गठित कर उन्हें पराजित किया। अपने प्रजाजनों की रक्षा की और वहाँ के लोगों की लाज बचाई।

बहराइच से साढे़ सात किमी0 पूर्व रेलवे स्टेशन बहराइच के निकट चित्तौरा झील है। इसी के किनारे, जहाँ से टेढ़ी नदी ’कुटिला’ निकली है, राजा सुहेलदेव से सैयद सालार मसूद गाजी घमासान युद्ध में पराजित होकर शहीद हो गए। सैयद सालार मसूद गाजी को पराजित करने के कारण इनका नाम पूरे भारत में फैल गया था। इन्होंने केवल सैयद सालार को ही पराजित नहीं किया वरन् बाद में भी वे विदेशी आक्रमणकारियों से निरन्तर लोहा लेते रहे।

राजा सुहेलदेव स्मारक समिति की ओर से महाराजा सुहेलदेव की स्मृति में चित्तौरा झील के किनारे स्थित उक्त ऐतिहासिक स्थल जहाँ पर उन्होंने सैयद सालार मसूद गाजी को परास्त कर शहीद किया था, एक मन्दिर का निर्माण कराया गया है और उनकी मूर्ति स्थापित की गई है। उनकी स्मृति में इस स्थान का नाम सुहेलनगर रखा गया है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी को यहाँ मेला लगता है।

इस जिले के स्थानीय रीति-रिवाजों में सुहेलदेव का स्मरण बड़े आदरपूर्वक किया जाता है।

Hope it Helps !!!!

Answered by Anonymous
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भारत-नेपाल सीमा के निकट बहराइच जनपद में बाबागंज रेलवे स्टेशन से तीन किमी0 की दूरी पर चरदा के प्रसिद्ध किले का ध्वंसावशेष उस ओर आने वाले यात्रियों के मस्तिष्क में अपनी मूक भाषा की एक करुण स्मृति भर देता है। वर्षों पूर्व यहाँ एक राजा का शासन था। उनका नाम सुहेलदेव था। उन्हें सुहिरिध्वज भी कहा जाता है जो कि मोरध्वज, मकरिध्वज आदि क्षत्रिय राजाओं के नाम से मिलता जुलता है। अलग-अलग इतिहासकार राजा सुहेलदेव को भर, थारु अथवा राजपूत जाति का मानते थे। चरदा की डीह राजा सुहेलदेव का किला माना जाता है।

गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी का नवासा सैयद सालार मसूद गाजी ने पंजाब से बहराइच तक जब अपनी विजय पताका फहरायी उस समय बहराइच के इसी नरेश महाराजा सुहेलदेव ने छोटे-छोटे पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना गठित कर उन्हें पराजित किया। अपने प्रजाजनों की रक्षा की और वहाँ के लोगों की लाज बचाई।

बहराइच से साढे़ सात किमी0 पूर्व रेलवे स्टेशन बहराइच के निकट चित्तौरा झील है। इसी के किनारे, जहाँ से टेढ़ी नदी ’कुटिला’ निकली है, राजा सुहेलदेव से सैयद सालार मसूद गाजी घमासान युद्ध में पराजित होकर शहीद हो गए। सैयद सालार मसूद गाजी को पराजित करने के कारण इनका नाम पूरे भारत में फैल गया था। इन्होंने केवल सैयद सालार को ही पराजित नहीं किया वरन् बाद में भी वे विदेशी आक्रमणकारियों से निरन्तर लोहा लेते रहे।

राजा सुहेलदेव स्मारक समिति की ओर से महाराजा सुहेलदेव की स्मृति में चित्तौरा झील के किनारे स्थित उक्त ऐतिहासिक स्थल जहाँ पर उन्होंने सैयद सालार मसूद गाजी को परास्त कर शहीद किया था, एक मन्दिर का निर्माण कराया गया है और उनकी मूर्ति स्थापित की गई है। उनकी स्मृति में इस स्थान का नाम सुहेलनगर रखा गया है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी को यहाँ मेला लगता !

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