महाराणा प्रताप तथा राव चन्द्रसेन में क्या-क्या समानता तथा असमानता थी?
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Explanation:
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।इससे उनके भाई रामसिंह और उदयसिंह उनसे रुष्ट हो गये और अकबर से मिल गये।
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।इससे उनके भाई रामसिंह और उदयसिंह उनसे रुष्ट हो गये और अकबर से मिल गये।अकबर ने इन्हें अपने अधीन करने के लिए कई बार सेना भेजी। पर इस वीर ने कभी भी अपना सर अकबर के आगे नही झुकाया।
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।इससे उनके भाई रामसिंह और उदयसिंह उनसे रुष्ट हो गये और अकबर से मिल गये।अकबर ने इन्हें अपने अधीन करने के लिए कई बार सेना भेजी। पर इस वीर ने कभी भी अपना सर अकबर के आगे नही झुकाया।ज्यादा दबाव पड़ने पर चन्द्रसेन ने जोधपुर छोडकर सिवाना में डेरा जमा लिया।और अकबर के खिलाफ युद्ध की तैय्यारी शुरू कर दी।
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।इससे उनके भाई रामसिंह और उदयसिंह उनसे रुष्ट हो गये और अकबर से मिल गये।अकबर ने इन्हें अपने अधीन करने के लिए कई बार सेना भेजी। पर इस वीर ने कभी भी अपना सर अकबर के आगे नही झुकाया।ज्यादा दबाव पड़ने पर चन्द्रसेन ने जोधपुर छोडकर सिवाना में डेरा जमा लिया।और अकबर के खिलाफ युद्ध की तैय्यारी शुरू कर दी।अकबर ने फुट डालों और राज करो कि नीति के तहत उनके भाई उदयसिंह को जोधपुर का राजा घोषित कर दिया।और हुसैनकुली को सेना लेकर सिवाना पर हमला करने के लिए भेजा,पर उस सेना को चन्द्रसेन के सहयोगी रावल सुखराज और पताई राठौड़ ने जबर्दस्त मात दी।
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।इससे उनके भाई रामसिंह और उदयसिंह उनसे रुष्ट हो गये और अकबर से मिल गये।अकबर ने इन्हें अपने अधीन करने के लिए कई बार सेना भेजी। पर इस वीर ने कभी भी अपना सर अकबर के आगे नही झुकाया।ज्यादा दबाव पड़ने पर चन्द्रसेन ने जोधपुर छोडकर सिवाना में डेरा जमा लिया।और अकबर के खिलाफ युद्ध की तैय्यारी शुरू कर दी।अकबर ने फुट डालों और राज करो कि नीति के तहत उनके भाई उदयसिंह को जोधपुर का राजा घोषित कर दिया।और हुसैनकुली को सेना लेकर सिवाना पर हमला करने के लिए भेजा,पर उस सेना को चन्द्रसेन के सहयोगी रावल सुखराज और पताई राठौड़ ने जबर्दस्त मात दी।दो वर्ष लगातार युद्ध होता रहा,थक हारकर अकबर ने कई बार चन्द्रसेन को दोबारा जोधपुर वापस देने और अपने अधीन बड़ा मनसबदार बनाने का प्रलोभन दिया। पर स्वंतन्त्रता प्रेमी चन्द्रसेन को यह स्वीकार नही था।
महाराणा प्रताप और चंडरासेन मे काफ़ी समानताए और विसमताए थी |
दोनो अपने नज़दीकी रिश्तेदारो के साथ साथ मुगल से जूझ रहे थे |
राजधानी बनाए जाने मे क्षमता मे असमानता
Explanation:
चन्द्रसेन और प्रताप दोनों को अपने भाई और साथियों के विरोध का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। मुगल मेवाड़, नागौर, अजमेर और अन्य स्थानों के साथ साथ मांडलगढ़ और चित्तौड़ पर कब्जा कर रहे थे। अनुकरणीयताओं के साथ-साथ दोनों शासकों की गतिविधियों में कुछ मूलभूत अंतर भी थे। दोनों शासक वहां के पहाड़ी इलाकों में रहकर मुग़ल को हराते थे | चन्द्रसेन चावंद को एक स्थायी राजधानी स्थापित करने में सक्षम नही थे तो वही महाराणा प्रताप इसमे सक्षम थे । प्रताप को चन्द्रसेन के संरक्षण और मुगल सेना के विकेंद्रीकरण के कारण विशेष परिस्थितियों में सहायता प्राप्त हुई।