महाराणा प्रताप तथा शिवाजी की विशेषताओं के बारे में लिखिए
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This is of maharana prataap
राष्ट्र रक्षा के प्रेरक महाराणा प्रताप की विशेषताएं --_____________________________
०१- महाराणा प्रताप दृढ-प्रतिज्ञ थे ! श्रीराम की प्रतिज्ञा और भीष्म की प्रतिज्ञा के समान उनकी प्रतिज्ञा आंकी जाती है !
०२- वे सच्चे राष्ट्र भक्त थे ! उसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन, पूरा परिवार, पूरा वैभव, अर्थात सब कुछ दांव पर लगा दिया था !
०३- वे अपने उद्देश्य में पूर्ण-रूपेण स्पष्ट थे और कर्तव्य में तत्पर थे ! उसी के अनुरूप उन्होंने अपनी जीवन-चर्या बचपन से ही बनायी थी !
०४- स्वदेशी का भाव उनमे कूट-कूट कर भरा हुआ था तो जनता को भी उन्होंने स्वदेश-प्रेम और देश-भक्ति से ओत-प्रोत कर के रखा !
०५- वे अत्यन्त साहसी थे ! निराशा उनके पास भी नहीं फटकती थी !
०६- वीरता उन्होंने माता की कोख से ही सीखी थी, तो माता की गोद ने भी उन्हें वीरता का प्रसाद दिया था ! माता की इस सीख के कारण ही वे सदैव दो तलवारें रखते थे कि वीर कभी निहत्थे पर वार नहीं करता और यदि शत्रु भी निहत्था मिल जाए तो एक तलवार उसे दे कर बराबरी पर युद्ध किया जा सके !
०७- वे शास्त्र और शस्त्र, दोनों में सुशिक्षित थे !
०८- उनके शस्त्र-संचालन का लाघव देखते ही बनता था ! बलालोल खाँ के वध का उदाहरण !
०९- सभी जातियों के लोगों के लिए उन्होंने सैनिक शिक्षा के केन्द्र गाँव गाँव में खोले !
१०- प्रत्येक ग्राम में आत्म-रक्षा के भाव के जनक भी महाराणा प्रताप हैं !
११- वे छापामार युद्ध प्रणाली के जनक थे ! आगे शिवाजी महाराज ने इसी प्रणाली का विशद अनुसरण किया !
१२ - वे अनुशासन प्रिय थे ! वे स्वयं कठोरता से अनुशासन का पालन करते थे तो अन्यों से भी कठोर अनुशासन की अपेक्षा रखते थे ! एक-दो उदाहरण के अतिरिक्त कोई उदाहरण नहीं मिलते कि आम जनता ने भी कभी सूचनाओं और निर्देशों का पालन न किया हो !
१३- उनकी वाणी में दुर्गा माता, सरस्वती माता और काली माता तीनों एक साथ विराजती थी !
१४- उनकी वाणी में दुर्गा माता विराजती थी अर्थात वे अपनी वाणी से मुरझाये हुए लोगों में भी प्राण-संचार कर देते थे !
१५- उनकी वाणी में सरस्वती माता विराजती थी अर्थात उनकी बात की कोई काट नहीं कर सकता था, सहयोगी तो क्या शत्रु भी उनकी बात के आगे नत-मस्तक रहता था !
१६- उनकी वाणी में काली माता विराजती थी अर्थात उनकी दकाल के आगे शत्रु-दल के प्राण सूख जाते थे - '' राणा थारी दकाल सुणनै अकबर धूज्यो जाय ''!
१७- वे कुशल-नेतृत्व-कर्ता थे !
१८ - वे युवकों में प्रिय थे, तो प्रौढ़ों व वृद्धों में भी समान रूप से प्रिय थे !
१९- वे वन्य जनों, ग्रामीण जनों व नगरीय जनों में समान-रूप से लोकप्रिय थे !
२०- उन्हें पद का अभिमान नहीं था ! ऊंच-नीच और छोटे-बड़े का भाव उनमे नहीं था ! वे अपने सब साथियों के साथ एक पंगत में बैठ कर भोजन करते थे ! यह शिक्षा उन्होंने बचपन में ही अपनी माता श्री से पायी थी ! बाद में यह मेवाड़ राज घराने की परम्परा ही बन गयी !
२१- उन्होने जनता का विश्वास अर्जित किया था, तो उनके साथी, सहयोगी और सेवक भी विश्वस्त थे ! उनमे से कोई भी लालच दे कर अकबरियों द्वारा खरीदा नहीं जा सका !
२२- वे कुशल संघटन-कर्ता थे ! मेवाड़ की जनता तो उनके साथ थी ही ! मेवाड़ के आस-पास के हिन्दू-मुसलमान शासकों को भी उन्होंने अकबर के विरुद्ध अपनी ओर कर रखा था !
२३- महाराणा उदयसिंह के कई पुत्र अर्थात महाराणा प्रताप के कई भाई अकबर की सेवा में चले गए, किन्तु प्रताप का कोई भी पुत्र अकबर की सेवा में नहीं गया ! वे अपने पिता एवं वंश की महानता से अपने को गौरवान्वित अनुभव करते थे !
२४ - श्री जयवन्ती देवी सोनगरा जैसी माता-श्री उनको प्राप्त थी, यह भी प्रताप की विशेषता है !
२५- महाराणा प्रताप कष्ट-सहिष्णु थे तो उनकी रानियाँ और पुत्र भी कष्ट-सहिष्णु थे ! उनकी रानियों में सौतिया-डाह नहीं था तो सन्तानों में भी अधिकार-लिप्सा नहीं थी !
२६- उन्हें महारानी अजवां देवी परमार जैसी पटरानी प्राप्त थी जो न केवल उनके दुःख-सुख में सदैव साथ रहती थी, अपितु उन्होंने ठीक प्रताप के ही अनुरूप अमर सिंह जैसा वीर पुत्र प्रदान किया था, जिनको देख कर निकट के लोग भी भ्रमवश समझते थे कि ये प्रताप ही आ रहे हैं, ऐसा उदाहरण केवल श्रीकृष्ण-पुत्र का ही विख्यात है !
२७- वे कुशल शिक्षक थे, वे आचार्य अर्थात अपने आचरण से सिखाने वाले थे '' यद् यद् आचरति श्रेष्ठः तत्तदेवेतरो जनः '' का अर्थ उन्हें भली भाँति ज्ञात था !
२८- उनकी करनी और कथनी में अन्तर नहीं रहता था !
२९- राणा प्रताप सब प्रकार से सच्चरित्र-व्यक्ति थे तो उनके कारण मेवाड़ की जनता भी पूर्णतः सच्चरित्र थी ! सुई की भी चोरी नहीं होती थी ! मेवाड़ के गावों में आज भी चोरी नहीं होती है !
३० - भ्रष्टाचार का तो जन्म भी उनके यहाँ हुआ ही नहीं था !
३१ - उनके सब कारिन्दे ही नहीं तो जनता भी '' अर्थ-शुचि '' का पूरा पालन करती थी !
३२- महाराणा प्रताप '' मातृवत् परदारेषु '' का पालन करते थे तो जनता भी उसका पालन करती थी ! रहीम की पत्नी का उदाहरण !
३३- वे अपने गुणों के कारण शत्रु पक्ष में भी पूजे जाते थे !
३४- वे त्याग और तप की प्रतिमूर्ति थे, तो उनकी सन्ताने और जनता भी उनकी ही प्रतिकृति थी !
३५- वे कुशल योजक थे ! किस को किस काम में लगाया जाए, इस योजकता के वे कुशल शिल्पी थे !
३६- वे सफल राष्ट्र निर्माता थे ! इसके अनेक उदाहरण उनके जीवन काल के भरे पड़े हैं !
३७- वे चतुर राज-नीतिज्ञ थे ! अकबर के वार्ताकारों को किस चतुराई से निपटाया और अकबर के दरबार में भी उनके खैर-ख्वाह रहते थे, ये उनकी राजनीतिक कुशलता के प्रमाण हैं !
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