महेश चंद्र त्रिपाठी की कविता
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लाठी और लेखनी
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लाठी और लेखनी
विधार्थी जीवन में किसी कवि की एक कविता पढ़ी थी । कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ थीं -
एक दिवस जब सुनकर हल्ला, मैं घर से बाहर आया ।
लाठी और लेखनी दोनों बहनों को लड़ते पाया ।।
तब जो कुछ भी लगा उचित, वह मैंने उनको समझाया ।
आगे की कविता
नागनाथ में सांपनाथ में जंग बराबर जारी है ।
जिसकी लाठी भैंस उसी की, माल मगर सरकारी है ।।
लाठी में गुण बहुत है, सदा राखिए संग ।
गहिरे नदी नारा जहां, तहां बचावै अंग ।।
तहां बचावै अंग, झपटि कुत्ता का मारै ।
दुश्मन दावागीर होय तिनहूं का झारै ।।
कह 'गिरधर कविराय, सुनौ हो दूर के बाठी ।
सब हथियारन छांडि़, हाथ मा लीजै लाठी ।।
कलम की महिमा अपरम्पार
कलम के गुण गाता संसार
कलम से वश में होते भूत
मीत बन जाते हैं यमदूत ।
मेरे पास नहीं है लाठी
मेरे पास कलम है
दूध भैंस का नित्य पिलाती
इतनी इसमें दम है
जिसकी लाठी भैंस उसी की
लेकिन उसे कसम है
घर में दाना नहीं अन्न का
फिर पय कहां हजम है ?
- महेश चन्द्र त्रिपाठी