Hindi, asked by GanjanRajput, 8 months ago

महेश और सौपनिल में बार बार बिजली जाने से उत्पन्न परेशानी को संवाद रूप में लिखिए।

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Answered by chaviLOVER
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Answer:

जीवन का उद्देश्य ही आनंद हे मनुष्य जीवन पर्यन्त आनंद की खोज में लगा रहता हे किसी को वह रत्न द्र्वय धन से मिलता हे किसी को भरे पुरे परिवार से किसी को लम्बा चौड़े भवन से , किसी को ऐश्वर्य से , लेकिन साहित्य का आनंद इस आनंद से ऊँचा हे , इससे पवित्र हे , उसका आधार सुन्दर और सत्य हे वास्तव में सच्चा आनंद सुन्दर और सत्य से मिलता हे उसी आनंद को दर्शाना वही आनंद उत्पन्न करना साहित्य का उद्देशय हे , ऐश्वर्य आनंद में ग्लानि छिपी होती हे . उससे अरुचि हो सकती हे पश्चाताप की भावना भी हो सकती हे पर सुन्दर से जो आनंद प्राप्त होता हे वह अखंड अमर हे .” ” जीवन क्या हे – ? जीवन केवल जिन खाना सोना और मर जाना नहीं हे . यह तो पशुओ का जीवन हे मानव जीवन में भी यही सब प्रवृत्तियाँ होती हे क्योकि वह भी तो पशु हे पर उसके उपरांत कुछ और भी होता हे उसमे कुछ ऐसी मनोवृत्तियां होती हे जो प्रकर्ति के साथ हमारे मेल में बाधक होती हे जो इस मेल में सहायक बन जाती हे जिन प्रवृत्तियाँमें प्रकर्ति के साथ हमारा सामंजस्य बढ़ता हे वह वांछनीय होती हे जिनमे सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती हे , वे दूषित हे . अहंकार क्रोध या देष हमारे मन की बाधक प्रवृत्तियाँ हे . यदि हम इन्हे बेरोकटोक चलने दे तो निसंदेह वो हमें नाश और पतन की और ले जायेगी इसलिए हमें उनकी लगाम रोकनी पड़ती हे उन पर सायं रखना पड़ता हे . जिससे वे अपनी सीमा से बाहर न जा सके हम उन पर जितना कठोर संयम रख सकते हे उतना ही मंगलमय हमारा जीवन हो जाता हे ”

” साहित्य ही मनोविकारों के रहस्यों को खोलकर सद्वृत्तियो को जगाता हे साहित्य मस्तिष्क की वस्तु बल्कि ह्रदय की वस्तु हे जहा ज्ञान और उपदेश असफल हो जाते हे वह साहित्य बाज़ी मार ले जाता हे साहित्य वह जादू की लकड़ी हे जो पशुओ में ईट पत्थरों में में पेड़ पौधों में विश्व की आत्मा का दर्शन करा देता हे ”

”जीवन मे साहितय की उपयोगिता के विष्य मे कभी कभी संदेह किया जाता हे कहा जाता हे की जो स्वभाव से अच्छे हे वो अच्छे ही रहेंगे चाहे कुछ भी पढ़े जो बुरे हे वो बुरे ही रहेंगे चाहे कुछ भी पढ़े . इस कथन मे सत्‍य की मात्रा बहुत कम हे इसे सत्य मान लेना मानव चरित्र को बदल देना होगा मनुष्य सवभाव से देवतुल्य हे जमाने के छल प्रपंच या परीईस्थितियो से वशीभूत होकर वह अपना देवत्य खो बेठता हे . साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर प्रतिष्टित करने की चेष्टा करता हे उपदेशो से नहीं,नसीहतो से नहीं भावो से मन को स्पंदित करके , मन के कोमल तारो पर चोट लगाकर प्रकर्ति से सामंजस्य उत्पन्न करके . हमारी सभ्यता साहित्य पर ही आधारित हे . हम जो कुछ हे साहित्य के ही बनाय हे विश्व की आत्मा के अंतर्गत राष्ट्र या देश की आत्मा एक होती हे इसी आतमा की प्रतिध्‍वनि हे ‘ साहित्य ‘ ”

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Answered by Anonymous
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