Hindi, asked by Billieellish, 5 months ago

महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को कैसा आचरण करना चाहिए​

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Answered by namanprajapati2020
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Answer:

यदि हम इन चुनौतियों की ओर ध्यान दें और इसके निवारण के लिए पानी प्राचीन परम्पराओं और विचारों की ओर नजर डालें तो हमारे सम्मुख भगवान बुद्ध के विचारों ऐसे रत्न की भांति उपस्थित होते हिं जिनकी प्रकाश किरणों से हमारी बुद्धि भ्रम का अन्धकार छट सकता है। लेखक की दृष्टि में भगवान बुद्ध की अनके साधनाएँ, विचार एवं ज्ञान मानव कल्याण के लिए मील के पत्थर हैं क्योंकि भगवन बुद्ध ने अहिसवादी समाज की रचना के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भगवान बुद्ध ने कहा है कि घृणा कभी समाप्त नहीं होती अपितु केवल प्यार से घृणा मिटती है।”

आज के विश्व-पटल पर जो घटनाएँ हो रही है उनमें हिंसा के उन्माद और उससे उपजने वाली अशांति, घृणा और द्वेष का बोलबाला है। इसके फलस्वरूप न केवल अस्थिरता बढ़ रही है और विकास की गति मंद पड़ रही है बल्कि मानव के भविष्य पर ही प्रश्न चिहन लग रहा है। सबके सुख, सबके निरोग रहने, शबी कल्याण की ओर अग्रसर हों और कोई भी दुखी न हो-ऐसी कामना हम हमेशा से करते रहे हैं। पृथ्वी, जल अन्तरिक्ष, समाज, पशु, पक्षी, वनस्पति, सबके लिए शान्ति की मंगलकामना भी हम वैदिक काल से ही करते चले आ रहे हैं पर आज जम भयानक क्षणों में जी रहे हैं। मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बनता जा रहा है।

आक मानवाधिकारों की रखा करना, मनुष्यता को बचाना और मानव-परिवेश को सुरक्षित रखना कठिन होता जा रहा है। इस यदि गौर से विचार करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि हमारी सोच में कहीं कमी आई है, अंतराल आया है और हम गलत दिशा में भटक रहे हैं। सही या सम्यक मार्ग क्या हो सकता है जिस पर चल कर समस्त मानव जाती का कल्याण हो? यह एक बड़ी चुनौती है और उसका समाधान ढूंढने के लिए अपनी पारंपरिक विचाओं की धरोहरों पर नजर डालें तो हमारे सामने भगवान् बुद्ध के विचार ऐसे रत्न की भाँती सामने आते हैं जिनकी प्रकाश-किरणों से हमारे मतिभ्रम का अन्धकार छंट सकता है।

महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुए अर्थात महानिर्वान की स्थिति को आज दो हजार पांच सौ वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है। परन्तु संधे (मठवासियों) ने बुद्ध की शिक्षा को शताब्दियों तक सुरक्षित रखा और उसके प्रचार-प्रसार में अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर दिया ताकि पृथ्वी पर रह रहे मनुष्यों को ज्ञान की प्राप्ति का सही रास्ता दिखाया जा सके। ज्ञान के परंपरा में यह एक क्रन्तिकारी घटना थी जिसने मानव समाज के सम्मुख सम्यक जीवन की नई शैली प्रस्तुत की।

बौद्ध विचारों के प्रति समर्पित शिष्यों में अगरिका धर्मपाल नाम का एक शिष्य भी था। श्रीलंका के इस सपूत ने सन 18९१ में भारत में महाबोधि सोसायटी नामक संस्था की स्थापना की और बौद्ध धर्म को पुनर्जिवित किया।

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