महात्मा गााँधी अपना काम अपने हाथ से करने पर बल देते थे। वे प्रत्येक आश्रमवासी से आशा
करते थे कक वह अपने शरीर से संबंधधत प्रत्येक कायय, सफाई तक स्वयं करेगा। उनका कहना था
कक जो श्रम नहीं करता है, वह पाप करता है और पाप का अन्न खाता है। ऋषि-मुननयों ने कहा
है – बबना श्रम ककए जो भोजन करता है, वह वस्तुत: चोर है। महात्मा गााँधी का समस्त जीवन-
दशयन श्रम-सापेक्ष था। उनका समस्त अथयशास्र यही बताता था कक प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पादन
कताय होना चाहहए । उनकी नननतयों की उपेक्षा करने के पररणाम हम आज भी भोग रहे हैं । न
गरीबी कम होने में आती है, न बेरोजगारी पर ननयंरण हो पा रहा हैऔर न अपराधों की वृद्धध
हमारे वश की बात हो रही है । दक्षक्षण कोररया वाससयों ने श्रमदान करके ऐसे श्रेष्ठ भवनों का
ननमायण ककया है, जजनसे ककसी को भी ईष्याय हो सकती है।
(1) उधचत शीियक दीजजए-
(क) श्रम की आवश्यकता (ख) श्रमहीनता के दुष्पररणाम
(ग) महात्मा गााँधी के श्रम-संबंधी षवचार (घ) श्रम सुदृढ जीवन का आधारआधार
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Explanation:
(1)
(क) श्रम की आवश्यकता
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