महात्मा गाांधी अपना काम हाथ से करने पर बल देते थे । वे प्रत्येक आश्रमवासी से आशा करते थे कक वह अपने
शरीर से सांबन्धधत प्रत्येक कायय, सफाई तक स्वयां करेगा। उनका कहना था कक जो श्रम नहीां करता है, वह पाप करता
हैऔर पाप का अधन खाता है। ऋषि-मुननयों ने कहा है- बबना श्रम के जो भोजन करता है, वस्तुतः वह चोर है।
महात्मा तक समस्त जीवन-दशयन श्रम-सापेक्ष था। उनका समस्त अथयशास्र यही बताता है कक प्रत्येक उपभोक्ता को
उत्पादनकताय होना चाहहए। उनकी नीनतयों की उपेक्षा के पररणाम आज भी भोग रहे है। न गरीबी कम होने में आती
है, न बेरोजगारी पर ननयांरण हो पा रहा हैऔर न अपराधों की वद्ृधध हमारे वश की बात रही है। दक्षक्षण
कोररयावाससयों ने श्रमदान करके ऐसे श्रेष्ठ भवनों का ननमायण ककया है, न्जनसे ककसी को भी ईष्याय हो सकती है।
प्र॰ –1 गद्याांश का उधचत शीषयक दीजिए ।
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Mahatma Gandhi aur Swatch Bharat
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