महात्मा गांधी के राष्ट्रवाद को लेकर बागान श्रमिकों के अपने अलग-अलग विचार थे उन्होंने इस में किस प्रकार की भूमिका ada ki?
Answers
Explanation:
महात्मा गांधी और राष्ट्रवाद की संकल्पना
प्रभा मजुमदार
इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी राष्ट्र का निर्माण एक सतत प्रक्रिया है और इसकी गति, दिशा और राह को निर्धारित करने के लिए, उस समाज और देश के नेता, विचारक तथा सामान्य नागरिकों की राष्ट्रीयता की अवधारणा बड़ा महत्व रखती है। यह अवधारणा, धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक चेतना के परिपेक्ष्य में, विभिन्न घटकों- अवययों के विमर्श, विश्लेषण-संशोधनों से गुजरते हुए, एक लंबे वैचारिक आंदोलन के दौरान लगातार परिमार्जित होती है।
Image result for gandhi and nationalism
1857 की पहले आंदोलन में जन समुदाय की एक विशाल भागीदारी संगठित रूप में उभर कर आई थी जिसमें अलग अलग धर्मों, समुदायों, भाषाई क्षेत्रों के लोगों ने स्वाधीनता का स्वप्न देखा था और हिंदू-मुसलमानों ने मिलकर साम्राज्यवाद को चुनौती दे डाली थी। अंग्रेजों ने इन दोनों धर्मावलंबियों के आचार-व्यवहार-मान्यताओं-विश्वासों में अन्तर जान लिया था और अपनी सत्ता की निरंतरता के लिए , एक दूसरे के विरोध में उनका प्रयोग भी।
भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर गांधी जी के उभरने से पहले ही बंगाल का विभाजन हो चुका था और परस्पर अविश्वास, नफरत की खाई काफी चौड़ी हो चुकी थी, जिसके और फैलने-गहराने की दिशा में , हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों के स्वयंभू संकीर्ण विचारधारा के नेताओं ने अपने अपने संगठन भी बना लिए थे।
महात्मा गांधी रातों-रात नेता नहीं बने थे, न ही उन्होंने जल्दबाजी में कोई आंदोलन खड़ा किया। वे देश के कोने कोने और गली-कूँचों में फिरे, भारत के असली जनमानस से मिले, समझे। दरिद्रता, अज्ञान, अशिक्षा, अंधविश्वास, धार्मिक-सामाजिक पाखंड, शोषण, छुआछूत जैसी जैसी बहुत गहराई तक धँसी समस्याओं और कुरीतियों को निकट से समझा और अनुभव भी किया। समाज के हाशिये पर पड़े पिछड़ी जातियों और महिलाओं के दर्द को महसूस किया।
इस सारे परिप्रेक्ष्य में रची गई राष्ट्रवाद की अवधारणा, निश्चित ही संकीर्ण, कट्टर और द्वेषपूर्ण नहीं हो सकती, जिसमें विरोधियों को मिटाने या प्रताड़ित करने की सोच हो, कुछ गिनेचुने लोगों या समूह के स्वार्थ हों, असमानताओं की खाइयाँ हों, जाति-भाषा-लिंग के कारण किसी को वंचित करने के षडयंत्र हों और शासक की निरंकुशता हो।
इतना ही नहीं, उनका यह राष्ट्रवाद, समग्र मानवतावाद से बहुत भिन्न भी नहीं हो सकता था- जिसमें कोई किसी का शत्रु नहीं होता और देशभक्ति साबित करने के लिए, किसी दूसरे देश को मुर्दाबाद कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती। आज के हिंसा, प्रतिशोध और नफरत से भरे माहौल में भले ही यह दुर्बलता का प्रतीक लगे, मगर यह वैश्विक दृष्टि संपन्न विचारक ही नहीं, जमीन से जुड़े कर्मठ कार्यकर्ता की, अपने राष्ट्र की प्रगति, शांति और एकता के लिए आवश्यक व्यावहारिक जीवनदृष्टि थी। एक सर्वसमावेशक उदार राष्ट्रवादी होने के नाते उनके जनआंदोलन में सभी धर्मों, वर्णों, वर्गों, विचारधाराओं केआर स्त्री पुरुष बराबरी के हिस्सेदार थे।