Social Sciences, asked by nidhip1213779, 1 month ago

महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यों का वर्णन​

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Answered by Anonymous
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Answer:

विनय कानून-भंग या सत्याग्रह, फिर वह सामूहिक हो या व्यक्तिगत, रचनात्मक कार्यका सहायक है, और वह सशत्र विद्रोहका स्थान भलीभांति ले सकता है। सत्याग्रहके लिए भी तालिमकी उतनी ही जरूरत है, जितनी सशत्र विद्रोहके लिए। सिर्फ दोनों तालिमोंके तरीके अलग-अलग है। दोनों हालतोंमें लड़ाई तो तभी छिड़ती है, जब उसकी जरूरत आ पड़ती है। फौजी बगावत तालीमका मतलब है हम सब हथियार चलाना सीखें, जिसका अन्त शायद एटम बमका उपयोग करना सीखनेमें हो सकता है। सत्याग्रहमें तालीमका अर्थ है, रचनात्मक कार्यक्रम या तामीरी काम।

Explanation:

गांधीजी ने 1941 में अपनी पुस्तक“रचनात्मक कार्यक्रम” की  प्रस्तावना में लिखा है कि, “रचनात्मक कार्यक्रम ही पूर्ण स्वराज्य या मुकम्मल आजादी को हासिल करने का सच्चा और अहिंसक रास्ता है। उसकी पूरी–पूरी सिद्धि ही संपूर्ण स्वतंत्रता है।” गांधी जी ने कुल 18 प्रकार के रचनात्मक कार्यक्रम समाज परिवर्तन हेतु दिये और उनका मानना था कि,“मेरी यह सूची पूर्ण होने का दावा नहीं करती यह तो महज मिसाल के तौर पर पेश की गई है।” समाज की जरूरत के हिसाब से बढ़ाये भी जा सकते हैं। गांधी जी के द्वारा दक्षिण अफ्रीका में ही सत्याग्रह के दरमियान रचनात्मक कार्यक्रम की प्रारंभिक झलक देखने को मिलती है। जूलु विद्रोह, बोअर युद्ध और प्लेग जैसी बीमारी में घायलों की सेवा-सुश्रुषा एवं गाँवों की साफ-सफाई आदि के रूप में। गांधीजी कहते हैं कि “दक्षिण अफ्रीका में समाज सेवा करना आसान नहीं था, लेकिन वहाँ जो कठिनाइयाँ सामने आती थीं, वे भारत की कठिनाइयों के मुक़ाबले में कुछ नहीं थीं। यहाँ समाज सेवक को अंधविश्वास, पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता की जिन बाधाओं से लड़ना पड़ता है, उनका परिमाण बहुत ज्यादा है। रूढ़िवादी व्यक्ति बुराइयों से दूर रहकर सही रास्ते पर चलता है। लेकिन जब रूढ़िवादिता में अज्ञान, पूर्वाग्रह और अंधविश्वास आ मिलते हैं तब वह सर्वथा अवांछनीय हो जाती है।” भारत में भी गांधी जी ने आजादी की लड़ाई के दरम्यान रचनात्मक कार्यक्रम को साथ-साथ रखा था और उनका मानना था कि सच्ची आजादी तभी मिल पाएगी जब हम उस लायक बनेंगे। सन् 1920 में गांधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा रचनात्मक कार्यक्रम भारत के सामने रखा था। उस समय से इस कार्यक्रम की आवश्यकता और प्रभावोत्पादकता में उनकी श्रद्धा बढ़ती गई और इस बात पर वे अधिकाधिक ज़ोर देने लगे कि संग्राम के पहले नैतिक शक्ति को विकसित करने और अनुशासन को दृढ़ करने तथा संग्राम के बाद सुसंगठित होने के लिए और जीत के नशे या हार की उदासी से बचने के लिए रचनात्मक कार्यक्रम सत्याग्रही के लिए आवश्यक है। चूँकि सत्याग्रह में निषेधात्मक तत्वों के साथ-साथ भावात्मक मूल्य जुड़े होते हैं। इसीलिए रचनात्मक कार्यक्रम सत्याग्रही के लिए भावात्मक पक्ष हैं। गांधी की ही तरह विनोबाजी असत्य को सत्य से, शस्त्र को वीणा से, चिल्लानेवाले को गायन और भजन से और विध्वंस के कार्य को रचनात्मक कार्य से जीतने की तकनीक देते हैं। गांधीजी कहते हैं कि “लड़ाई के अंत में हममें निडरता आनी चाहिए और रचनात्मक कार्य के अंत में योजना-शक्ति और कार्य-शक्ति। यदि हममें योजना-शक्ति और कार्य-शक्ति न आये तो हम राज्य नहीं चला सकते। यदि हम अहिंसा से राज्य प्राप्त करें तो वह सेवा-वृत्ति से ही कायम रखा जा सकता है। किन्तु यदि हम सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से राज्य लेंगे तो वह केवल हिंसा से ही टिकेगा। उचित यह है कि हम अहिंसा की शक्ति को पुष्ट करें और सत्ता के बल त्यागें। जबतक हममें मिलकर रहने की शक्ति नहीं आती तबतक अहिंसा से स्वराज्य प्राप्त करना असंभव है। मैंने इसीलिए लोगों के सम्मुख त्रिविध कार्यक्रम रखा है।” रचनात्मक कार्यक्रम से सत्याग्रह आंदोलन पूर्ण, अहिंसक और सृजनशील बनता है। सत्याग्रह और रचनात्मक कार्यक्रम समाज परिवर्तन तथा सामाजिक नियंत्रण की पूरक पद्धति हैं। एक तरफ समाज में अंतर्निहित बुराई, शोषण, अन्याय और अत्याचार को सत्याग्रह द्वारा दूर किया जा सकता है वहीं दूसरी तरफ रचनात्मक कार्यक्रम द्वारा समतामूलक समाज संगठित कर सकते हैं। गांधीजी बराबर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि स्वराज प्राप्त करने के साधन के रूप में रचनात्मक काम करते रहना जरूरी है

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