Hindi, asked by roshanshaikh9840, 5 days ago

महात्मा के दर्शन के लिए हमेशा लोगों की भीड़ लगी रहती थी​

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हल्दीघाटी: झाला का बलिदान

दानव समाज में अरुण पड़ा

जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा

इस तरह भभकता था राणा

मानो सर्पो में गरुड़ पड़ा

हय रुण्ड कतर, गज मुण्ड पाछ

अरि व्यूह गले पर फिरती थी

तलवार वीर की तड़प तड़प

क्षण क्षण बिजली सी गिरती थी

राणा कर ने सर काट काट

दे दिए कपाल कपाली को

शोणित की मदिरा पिला पिला

कर दिया तुष्ट रण काली को

पर दिन भर लड़ने से तन में

चल रहा पसीना था तर तर

अविरल शोणित की धारा थी

राणा क्षत से बहती झर झर

घोड़ा भी उसका शिथिल बनाथा

उसको चैन ना घावों से

वह अधिक अधिक लड़ता यद्दपि

दुर्लभ था चलना पावों से

तब तक झाला ने देख लिया

राणा प्रताप है संकट में

बोला न बाल बांका होगा

जब तक हैं प्राण बचे घट में

अपनी तलवार दुधारी ले

भूखे नाहर सा टूट पड़ा

कल कल मच गया अचानक दल

अश्विन के घन सा फूट पड़ा

राणा की जय, राणा की जय

वह आगे बढ़ता चला गया

राणा प्रताप की जय करता

राणा तक चढ़ता चला गया

रख लिया छत्र अपने सर पर

राणा प्रताप मस्तक से लेले

सवर्ण पताका जूझ पड़ा

रण भीम कला अंतक से ले

झाला को राणा जान मुगल

फिर टूट पड़े थे झाला पर

मिट गया वीर जैसे मिटता

परवाना दीपक ज्वाला पर

झाला ने राणा रक्षा की

रख दिया देश के पानी को

छोड़ा राणा के साथ साथ

अपनी भी अमर कहानी को

अरि विजय गर्व से फूल उठे

इस त रह हो गया समर अंत

पर किसकी विजय रही बतला

ऐ सत्य सत्य अंबर अनंत

∼श्याम नारायण

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