महादेवी वमा जी को दूसरी स्त्रियों की तरह अपना परिवार , जीवन में नहीं मिला नो उन्होंने अपना एक साहित्यिक परिवार तो बनाया ही अपने कुत्तों , बिल्लियों , गिलहरी और हिरन आदि का अपना जीवंत परिवार बनाया और इस अर्थ में कि ये सभी जीव - जंतु पूरी तरह उन्हीं पर आश्रित थे । उनके माध्यम से महादेवी जी के मन के भीतर एकांत में दवा पड़ा उनका अतृप्त मातृत्व अद्भुत तृप्ति पाता था । जैसी ममता से वे अपने इन कुत्ते - बिल्नियों की देखभाल करती थीं , यह सचमुच बहुत मार्मिक धा । उनके कुत्ते कोई ऊँची नस्ल के प्रशिक्षित कुत्ते तो धे नहीं . बिल्कुल साधारण सड़क छाप कुत्ते थे लेकिन वे उन पर जैसी ममता बिखेरती थीं वह उन्हें विशिष्ट बना देता था - उदाहरण के लिए जब कोई कुत्तिया बच्चे जनती तो महादेवी जी अपने हाथों से उन्हें दूध पिलाती , रुई के फाहे से , धीरे - धीरे बड़े प्यार से । सच्च्ने अर्थों में वह उनका अपना , बहुत अपना परिवार था । उनका अतृप्त मातृत्व अदभुत तृप्ति कैसे पाता
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- महादेवी वमा जी को दूसरी स्त्रियों की तरह अपना परिवार , जीवन में नहीं मिला नो उन्होंने अपना एक साहित्यिक परिवार तो बनाया ही अपने कुत्तों , बिल्लियों , गिलहरी और हिरन आदि का अपना जीवंत परिवार बनाया और इस अर्थ में कि ये सभी जीव - जंतु पूरी तरह उन्हीं पर आश्रित थे । उनके माध्यम से महादेवी जी के मन के भीतर एकांत में दवा पड़ा उनका अतृप्त मातृत्व अद्भुत तृप्ति पाता था . ..
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महादेवी वमा जी को दूसरी स्त्रियों की तरह अपना परिवार , जीवन में नहीं मिला नो उन्होंने अपना एक साहित्यिक परिवार तो बनाया ही अपने कुत्तों , बिल्लियों , गिलहरी और हिरन आदि का अपना जीवंत परिवार बनाया और इस अर्थ में कि ये सभी जीव - जंतु पूरी तरह उन्हीं पर आश्रित थे । उनके माध्यम से महादेवी जी के मन के भीतर एकांत में दवा पड़ा उनका अतृप्त मातृत्व अद्भुत तृप्ति पाता था . ..
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