महादेवी वर्मा की कविता 'मैं प्रिय पहचानी नहीं' का अर्थ
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Isla MATLAB hai ki 'mai priy pehchani nhi' mere priy Maine tumhe nhi pehchana
महादेवी वर्मा की कविता 'मैं प्रिय पहचानी नहीं' का अर्थ:
महादेवी जी ने यह कविता विरह के भाव में लिखा हैं। महादेवी जी कहती हैं कि वो अपने प्रिय का रास्ता देखते-देखते इतना कठोर हो गयीं हैं कि अब अगर वो आभी जाए, तो उसको पहचान नहीं पाएंगी।
आकाश को हिमालय की जल से धुलकर बिलकुल साफ कर दिया है। घर में भी दिए जल रहे मगर किसने किया ये सब मुझे कुछ पता नहीं है।
अब मेघ भी सुबह में सूर्य की किरणों में लाल नहीं हुआ करता, न ही मेरा प्रिय लौटकर मुझे कहानी सुनाता है।
दिल से मैं इतना कठोर हो गयीं हूँ कि शाम के समय में आकाश में निकला इन्द्रधनुष भी अब अच्छा नहीं लगता।
ना ही अब मेरे जज्बातों में कोई चाहत हैं न ही अब आँखों में कोई ख्वाब है, जिसके टूटने की वजह से आँखों में आंसू है।
ऐसा लगता है, ये दुनिया कितनी बड़ी है और मैं दुःख की सुहागन के पास दुःख के प्रति कितना प्रेम लिए किसी डगर पर हूँ, जहाँ मेरी कोई निशानी नहीं, और न मैं किसी को खुद के सिवा पहचानतीा हूँ।
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