Hindi, asked by SuperUserHero, 7 months ago

Mahabharat ke 10 pasandida charitra likhiye Mahabharat ke 10 durbhagyapurna ghatna likhiye NO WRONG ANSWERS

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Answered by PriyanshuBist2005
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Answer:

Here Are the main characters of MAHABHARAT-

भगवान श्रीकृष्ण

भीष्म पितामह (देवव्रत) (गंगापुत्र)

कुन्ती -- पाण्डु की पत्नी और पाण्डवों की माता

कर्ण (सूर्यपुत्र)

युधिष्ठिर (यमपुत्र)

भीम (पवनपुत्र)

अर्जुन (इन्द्रपुत्र)

नकुल

सहदेव

द्रौपदी (अथवा पांचाली, कृष्णा)

दुर्योधन

दुःशासन

शकुनि (गांधार नरेश)

द्रोणाचार्य

आचार्य-कृप

Here are the 10 wrong happenings of MAHABHARAT-

एकलव्य की घटना : एकलव्य भगवान श्रीकृष्ण के पितृव्य (चाचा) के पुत्र थे जिसे बाल्यकाल में ज्योतिष के आधार पर वनवासी भील राज निषादराज को सौंप दिया गया था। महाभारत काल में प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश में सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य निषादराज हिरण्यधनु का था। गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी। एकलव्य अपना अंगूठा दक्षिणा में नहीं देते या गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा दक्षिणा में नहीं मांगते तो इतिहास में एकलव्य का नाम नहीं होत

इंद्रप्रस्थ में दुर्योधन : पांडव अपने रहने के लिए इंद्रप्रस्थ नामक एक शहर बसाते हैं और उसमें एक मायावी महल बनवाते हैं। यह महल मायावी असुर मयासुर बनाता है। इस महल की खासियत यह थी कि जहां पानी का ताल नजर आता था वहां फर्श होता था और जहां फर्श नजर आता था वहां पानी का ताल होता था। दुर्योधन के मन में भी इस महल को देखने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।

चीरहरण : महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रौपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। जब वहां द्रौपदी का अपमान हो रहा था तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए। इन सभी को उनके मौन रहने का दंड भी मिला।

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Answered by FanzyRacer
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Answer:

1.एकलव्य की घटना : एकलव्य भगवान श्रीकृष्ण के पितृव्य (चाचा) के पुत्र थे जिसे बाल्यकाल में ​ज्योति​ष के आधार पर वनवासी भील राज निषादराज को सौंप दिया गया था। महाभारत काल में प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश में सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य निषादराज हिरण्यधनु का था। गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी। एकलव्य अपना अंगूठा दक्षिणा में नहीं देते या गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा दक्षिणा में नहीं मांगते तो इतिहास में एकलव्य का नाम नहीं होता।

2.इंद्रप्रस्थ में दुर्योधन :

पांडव अपने रहने के लिए इंद्रप्रस्थ नामक एक शहर बसाते हैं और उसमें एक मायावी महल बनवाते हैं। यह महल मायावी असुर मयासुर बनाता है। इस महल की खासियत यह थी कि जहां पानी का ताल नजर आता था वहां फर्श होता था और जहां फर्श नजर आता था वहां पानी का ताल होता था। दुर्योधन के मन में भी इस महल को देखने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।  वह जैसे ही महल के अंदर प्रवेश किया तो उसको एक भव्य हाल नजर आया। उस हाल में सुंदर फर्श लगा हुआ था और उपर गैलरी में द्रौपदी खड़ी हुई थी। दुर्योधन जैसे ही फर्श पर पैर रखता है वह पानी की ताल में गिर जाता है। दरअसल फर्श जैसा नजर आने वाला वह एक पानी का ताल ही होता है। पानी का ताल अर्थात स्वीमिंग पूल। उपर गैलरी में देख रही द्रौपदी यह घटना देखकर खूब जोर से हंसती है और कहती है, 'अंधे का पुत्र अंधा।'...दुर्योधन इस घटना से बहुत शर्मिंदा होकर खुद को अपमानीत सा समझता है और मन ही मन द्रौपदी से बदला लेने की सोचने लगता है।

3.लाक्षागृह कांड : शकुनी की नीति के तहत दुर्योधन ने पांडवों के रुकने के लिए एक ऐसा महल बनवाया था, जो लाख से बना थे जिसे बाद में लाक्षागृह कहा गया। दुर्योधन की योजना के अनुसार इस महल में रात में चुपचाप से आग लगा दी गई थी ताकि सोते हुए पांडवों की इस महल में ही जलकर मृत्यु हो जाए।

4. भीम नहीं उठा पाएं थे हनुमानजी की पूंछ : सभी को यह घटना तो मालूम ही होगी की बलशाली भीम हनुमानजी की पूंछ नहीं उठा पाए थे। दरअसल, भीम कुंति के कहने पर कमलदल लेने के लिए जंगल में एक रास्ते से जा रहे थे तभी उन्हें रास्ते में लेटे के वानर नजर आया। भीम ने उसे वानर समझकर कहा कि, ऐ वानर! अपनी ये पूंछ हटाकर मुझे निकलने का रास्ता दो। वानर ने कहा कि तुम ही हटा लो पूंछ। भीम के लाख प्रयास के बाद भी जब पूंछ अपने स्थान से नहीं हटी तो भीम समझ गए कि ये कोई साधारण वानर नहीं है। भीम ने क्षमा मांगी।

5. रणछोड़दास : जरासंध ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपने मित्र कालयवन को बुलाया था। कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया। उसने मथुरा नरेश कृष्ण के नाम संदेश भेजा और कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया। श्रीकृष्ण ने उत्तर में संदेश भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो, सेना को व्यर्थ क्यूं लड़ाएं। कालयवन ने स्वीकार कर लिया अक्रूरजी और बलरामजी ने कृष्ण को इसके लिए मना किया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कालयवन को शिव द्वारा दिए वरदान के बारे में बताया और यह भी कहा कि उसे कोई भी हरा नहीं सकता। श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि कालयवन राजा मुचुकुंद द्वारा मृत्यु को प्राप्त होगा। मुचुकंद एक वरदान के चलते चिरनिद्रां में सो रहे है। उन्हें जो जगायेगा वह मृत्यु को प्राप्त होगा।

6. जरासंध का वध : ब‌िहार के राजगृह में अवस्‍थ‌ित है कंस के ससुर जरासंध का अखाड़ा। जरासंध बहुत बलवान था। मान्यता है की इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्‍ण के इशारे पर भीम ने उसका वध क‌िया था। राजगृह को राजगीर कहा जाता है। रामायण के अनुसार ब्रह्मा के चौथे पुत्र वसु ने 'गिरिव्रज' नाम से इस नगर की स्थापना की। बाद में कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले वृहद्रथ ने इस पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया। वृहद्रथ अपनी शूरता के लिए मशहूर था।

7.चीरहरण : महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रौपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। जब वहां द्रौपदी का अपमान हो रहा था तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए। इन सभी को उनके मौन रहने का दंड भी मिला।

8.कर्ण का वध : कवच कुंडल उतर जाने के बाद, अमोघ अस्त्र नहीं होने के बावजूद कर्ण में अपार शक्तियां थी। युद्ध के सत्रहवें दिन शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता है। बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है।

9.द्रोण वध : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनकर युद्ध में कोहराम मचा देते हैं। अश्वत्थामा और उसने पिता द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के खेमे में दहशत फैल जाती है। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से भेद का सहारा लेने को कहते हैं। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बात फैला दी गई कि '

10.जयद्रथ का वध : महाभारत युद्ध में जयद्रथ के कारण अकेला अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया था और दुर्योधन आदि योद्धाओं ने एक साथ मिलकर उसे मार दिया था। इस जघन्नय अपराध के बाद अर्जुन प्रण लेते हैं कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध नहीं कर पाया तो मैं स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा। इस प्रतिज्ञा से कौरवों में हर्ष व्याप्त हो जाता है और पांडवों में निराशा फैल जाती है। कौरव किसी भी प्रकार से जयद्रथ को सूर्योस्त तक बचाने और छुपान में लग जाते हैं।

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