Mahabharat se hame kya shiksha milti hai?
महाभारत से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
Answers
1.जीवन हो योजनाओं से भरा : जीवन के किसी भी क्षेत्र में बेहतर रणनीति आपके जीवन को सफल बना सकती है और यदि कोई योजना या रणनीति नहीं है तो समझो जीवन एक अराजक भविष्य में चला जाएगा जिसके सफल होने की कोई गारंटी नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के पास पांडवों को बचाने का कोई मास्टर प्लान नहीं होता तो पांडवों की कोई औकात नहीं थी कि वे कौरवों से किसी भी मामले में जीत जाते।
2.संगत और पंगत हो अच्छी : कहते हैं कि जैसी संगत वैसी पंगत और जैसी पंगत वैसा जीवन। आप लाख अच्छे हैं लेकिन यदि आपकी संगत बुरी है, तो आप बर्बाद हो जाएंगे। लेकिन यदि आप लाख बुरे हैं और आपकी संगत अच्छे लोगों से है और आप उनकी सुनते भी हैं, तो निश्चित ही आप आबाद हो जाएंगे। कौरवों के साथ शकुनि जैसे लोग थे जो पांडवों के साथ कृष्ण। शकुनि मामा जैसी आपने संगत पाल रखी है तो आपका दिमाग चलना बंद ही समझो।
3.अधूरा ज्ञान घातक : कहते हैं कि अधूरा ज्ञान सबसे खतरनाक होता है। इस बात का उदाहरण है अभिमन्यु। अभिमन्यु बहुत ही वीर और बहादुर योद्धा था लेकिन उसकी मृत्यु जिस परिस्थिति में हुई उसके बारे में सभी जानते हैं। मुसीबत के समय यह अधूरा ज्ञान किसी भी काम का नहीं रहता है। आप अपने ज्ञान में पारंगत बनें। किसी एक विषय में तो दक्षता हासिल होना ही चाहिए।
4.दोस्त और दुश्मन की पहचान करना सीखें : महाभारत में ऐसे कई मित्र थे जिन्होंने अपनी ही सेना के साथ विश्वासघात किया। ऐसे भी कई लोग थे, जो ऐनवक्त पर पाला बदलकर कौरवों या पांडवों के साथ चले गए। शल्य और युयुत्सु इसके उदाहरण हैं। इसीलिए कहते हैं कि कई बार दोस्त के भेष में दुश्मन हमारे साथ आ जाते हैं और हमसे कई तरह के राज लेते रहते हैं। कुछ ऐसे भी दोस्त होते हैं, जो दोनों तरफ होते हैं। जैसे कौरवों का साथ दे रहे भीष्म, द्रोण और विदुर ने अंतत: युद्ध में पांडवों का ही साथ दिया।
5.हथियार से ज्यादा घातक बोल वचन : महाभारत का युद्ध नहीं होता यदि कुछ लोग अपने वचनों पर संयम रख लेते। जैसे द्रौपदी यदि दुर्योधन को ‘अंधे का पुत्र भी अंधा’ नहीं कहती तो महाभारत नहीं होती। शिशुपाल और शकुनी हमेशा चुभने वाली बाते ही करते थे लेकिन उनका हश्र क्या हुआ यह सभी जानते हैं। सबक यह कि कुछ भी बोलने से पहले हमें यह सोच लेना चाहिए कि इसका आपके जीवन, परिवार या राष्ट्र पर क्या असर होगा।
6.जुए-सट्टे से दूर रहो : शकुनि ने पांडवों को फंसाने के लिए जुए का आयोजन किया था जिसके चलते पांडवों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था। अंत में उन्होंने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया था। यह बात सभी जानते हैं कि फिर क्या हुआ? अत: जुए, सट्टे, षड्यंत्र से हमेशा दूर रहो। ये चीजें मनुष्य का जीवन अंधकारमय बना देती हैं।
7. सदा सत्य के साथ रहो : कौरवों की सेना पांडवों की सेना से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी। एक से एक योद्धा और ज्ञानीजन कौरवों का साथ दे रहे थे। पांडवों की सेना में ऐसे वीर योद्धा नहीं थे। कहते हैं कि विजय उसकी नहीं होती जहां लोग ज्यादा हैं, ज्यादा धनवान हैं या बड़े पदाधिकारी हैं। विजय हमेशा उसकी होती है, जहां ईश्वर है और ईश्वर हमेशा वहीं है, जहां सत्य है इसलिए सत्य का साथ कभी न छोड़ें। अंतत: सत्य की ही जीत होती है। सत्य के लिए जो करना पड़े करो।
8. लड़ाई से डरने वाले मिट जाते हैं : जिंदगी एक उत्सव है, संघर्ष नहीं। लेकिन जीवन के कुछ मोर्चों पर व्यक्ति को लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जो व्यक्ति लड़ना नहीं जानता, युद्ध उसी पर थोपा जाएगा या उसको सबसे पहले मारा जाएगा। महाभारत में पांडवों को यह बात श्रीकृष्ण ने अच्छे से सिखाई थी। पांडव अपने बंधु-बांधवों से लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने समझाया कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण तरीके से नहीं होता, तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है। कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं।
युद्ध भूमि पर पहुंचने के बाद भी अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि न कोई मरता है और न कोई मारता है। सभी निमित्त मात्र हैं। आत्मा अजर और अमर है… इसलिए मरने या मारने से क्या डरना?
9. खुद नहीं बदलोगे तो समाज तुम्हें बदल देगा : जीवन में हमेशा दानी, उदार और दयालु होने से काम नहीं चलता। महाभारत में जिस तरह से कर्ण की जिंदगी में उतार-चढ़ाव आए, उससे यही सीख मिलती है कि इस क्रूर दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखना कितना मुश्किल होता है। इसलिए समय के हिसाब से बदलना जरूरी होता है, लेकिन वह बदलाव ही उचित है जिसमें सभी का हित हो। कर्ण ने खुद को बदलकर अपने जीवन के लक्ष्य तो हासिल कर लिया, लेकिन वे फिर भी महान नहीं बन सकें, क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा का उपयोग समाज से बदला लेने की भावना से किया। बदले की भावना से किया गया कोई भी कार्य आपके समाज का हित नहीं कर सकता।
10. शिक्षा का सदुपयोग जरूरी : समाज ने एक महान योद्धा कर्ण को तिरस्कृत किया था, जो समाज को बहुत कुछ दे सकता था लेकिन समाज ने उसकी कद्र नहीं की, क्योंकि उसमें समाज को मिटाने की भावना थी। कर्ण के लिए शिक्षा का उद्देश्य समाज की सेवा करना नहीं था अपितु वो अपने सामर्थ्य को आधार बनाकर समाज से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। समाज और कर्ण दोनों को ही अपने-अपने द्वारा किए गए अपराध के लिए दंड मिला है और आज भी मिल रहा है। कर्ण यदि यह समझता कि समाज व्यक्तियों का एक जोड़ मात्र है जिसे हम लोगों ने ही बनाया है, तो संभवत: वह समाज को बदलने का प्रयास करता न कि समाज के प्रति घृणा करता।