mahadevi verma dwara rachit murjhaya phool kavita ka saransh
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अपनी इस कविता मुरझाया फूल में वो पुष्प से कहती है की सूखे सुमन अपने बाल्य काल में तुम कली के रूप में थे । उस समय हँसते खिलखिलाते हुए तुम पवन के प्रभाव से खिल गए । जब शुरुवात में पुष्प खिला तो उसपर बहोत सारे भँवरे आकर मधु के लिए मंडराने लगे । जब पुष्प खिलता है उस समय उसपर चन्द्रमा, पवन और माली का स्नेह उमड़ कर आने लगता हैं । कोई उसको हंसाता है, कोई उसको देखकर आनंदित होता है, कोई लोरियां गाकर सुलाता हैं ।
महादेवी वर्मा पुष्प से पूंछती है की जब तू उद्यान में अठखेलिया कर रहा था, तब क्या तूने इस सोचा था की तेरा अंत होगा । इस समय जब तू मुरझाया हुआ पड़ा है उद्यान में, अब कोई भ्रमर क्यों पास नही आता हे तेरे । और वो पवन जिसने तुझे आनंद दिया था उसीने आज तुझे गिरा दिया हैं । आज जब तू मुरझाया हुआ धरती पर पड़ा हुआ है, कोई तेरे लिए रोने वाला नहीं हैं ।
आगे बहोत ही गंभीर होकर वर्मा जी पुष्प को हौसला प्रदान करते हुए कहती है , पुष्प व्यथित मत हो । क्योंकि तेरी ही नहीं इस स्वार्थमय संसार में सभी की यही गति होती हैं । संसार स्वार्थ के ऊपर ही चलता हैं । जब तूने अपनी सारी खुशबु और सुंदरता जगत पर वार दी ,फिर भी संसार ने तेरी इस दशा पर दुःख ना किया तो फिर हम जैसे निसार मनुष्य के हश्र पर कौन आंसू बहाने वाला है ?
कवियत्री ने यहाँ पर पुष्प के जीवन का वर्णन करते हुए कलात्मक रूप से मनुष्य जीवन की निःसारता और संसार के स्वार्थमय होने का सटीक वर्णन किया है । कवियत्री कहती है की मनुष्य को ये समझना चाहिए की जीवन क्षणभंगुर है व उसी अनुसार संसार में आचरण करना चाहिए ।