महगाई और मिलावट को लेकर दो औरतों के बीच संवाद।
Answers
रमा-- हैलो सीता क्या हाल है?
सीता-- मैं ठीक हूँ और तुम बोलो?
रमा-- मैं भी ठीक हूँ लेकिन मुझे लगता है कि तुम गहरे विचार में हो।। आपके द्वारा क्या सोचा जा रहा है?
सीता-- आप सही हैं। मैं आवश्यक वस्तुओं की मौजूदा कीमतों में वृद्धि के बारे में सोच रही हूं।
रमा--ओह, हाँ वास्तव में, आजकल सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं।
सीता--हाँ, यह आम लोगों को गंभीरता से प्रभावित कर रहा है ?
रमा-- हाँ, उच्च कीमतों के सभी पिछले रिकॉर्ड टूट गया है।
सीता--बिल्कुल! चावल, केरोसीन तेल, खाद्य तेल और सब्जियां अत्यधिक उच्च कीमतों पर बेची जा रही हैं।
रमा--ठीक है इसके अलावा, कागज, पेन और अन्य स्थिर वस्तुओं की कीमत भी कई गुना बढ़ रही है।
सीता--हां, परिणामस्वरूप संरक्षक और छात्र भी एक बड़ी परेशानी का सामना कर रहे हैं।
रमा--लेकिन मैं नहीं समझ पा रही हूं कि चीजों की ऊंची कीमतों के लिए कौन जिम्मेदार है?
सीता-- मुझे लगता है कि इस कीमतों में वृद्धि के लिए होर्डर्स काफी हद तक जिम्मेदार हैं। इसके अलावा, कम उत्पादन के कारण खाद्य आपूर्ति की कमी भी कीमतों में वृद्धि को गति देती है।
रमा-- मुझे भी ऐसा लगता है। लेकिन यह कीमत बढ़ोतरी कैसे की जा सकती है?
सीता--कृत्रिम संकट पैदा करने वाले होर्डर्स के बीमार उद्देश्य को रोकने के लिए सरकार सख्त उपाय कर सकती है। इस मामले में व्यवसाय समुदाय के नेता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
रमा--आप सही हैं। इसके अलावा, व्यापारिक नेताओं सहित सभी सचेत लोगों को आगे बढ़ना चाहिए ताकि कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सरकार की मदद कर सकें।
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Answer:
रचना – अलका बहन नमस्ते! कैसी हो?
अलका – नमस्ते रचना, मैं ठीक हूँ पर महँगाई ने दुखी कर दिया है।
रचना – ठीक कहती हो बहन, अब तो हर वस्तु के दाम आसमान छूने लगे हैं।
अलका – मेरे घर में तो नौकरी की बँधी-बधाई तनख्वाह आती है। इससे सारा बजट खराब हो गया है।
रचना – नौकरी क्या रोज़गार क्या, सभी परेशान हैं।
अलका – हद हो गई है कोई भी दाल एक सौ बीस रुपये किलो से नीचे नहीं है।
रचना – अब तो दाल-रोटी भी खाने को नहीं मिलने वाली।
अलका – बहन कल अस्सी रुपये किलो तोरी और साठ रुपये किलो टमाटर खरीदकर लाई। आटा, चीनी, दाल, चावल मसाले दूध सभी में आग लगी है।
रचना – फल ही कौन से सस्ते हैं। सौ रुपये प्रति किलो से कम कोई भी फल नहीं हैं। अब तो लगता है कि डाक टर जब लिखेगा तभी फल खाने को मिलेगा।
अलका – सरकार भी कुछ नहीं करती महँगाई कम करने के लिए। वैसे जनता की भलाई के दावे करती है। जमाखोरों पर कार्यवाही भी नहीं करती है।
रचना – नेतागण व्यापारियों से चुनाव में मोटा चंदा लेते हैं फिर सरकार बनाने पर कार्यवाही कैसे करे।
अलका – गरीबों को तो ऐसे ही पिसना होगा। इनके बारे में कोई नहीं सोचता।