महल में धाय माँ अरावली पहाड़ बन कर बैठ गई है।
अरावली पहाड़ा (हँसती है) तो तुम लोग बनास नदी
बनकर बहो ना खूब नाचो, गाओ। यो आज कोई उत्सव
का दिन नहीं था, फिर भी उन्होंने कहा, मेरे बनवाए हुए
मयूर-पक्ष कुण्ड में दीपदान करो। मालूम हो, जैसे मेघ
पानी-पानी हो गये हों और बिजलियाँ टुकड़े-टुकड़े हो
गई हों।
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) महल में धाय माँ अरावली पहाड़ बन कर बैठ गई है।
अरावली पहाड़ा (हँसती है) तो तुम लोग बनास नदी
बनकर बहो न। खूब नाचो, गाओ। यो आज कोई उत्सव
का दिन नहीं था, फिर भी उन्होंने कहा, मेरे बनवाए हुए
मयूर-पक्ष कुण्ड में दीपदान करो। मालूम हो, जैसे मेघ
पानी-पानी हो गये हों और बिजलियाँ टुकड़े-टुकड़े हो
गई हों।
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