mahan sangeetkaar tansen ki jeevani
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तानसेन या मियां तानसेन या रामतनु पाल हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक महान ज्ञाता थे। उन्हे सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है। संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुढ़कते हैं तो ताल में। विकिपीडिया
जन्म: 1506, ग्वालियर
मृत्यु: 1589, आगरा
पूर्ण नाम: Ramtanu Pandey
अंत्येष्टि स्थल: The Memorial of Tansen, ग्वालियर
पुस्तकें: Tashrih-ul-moosiqui: Persian Translation of Tansen's Original Work "Budh Prakash"
बच्चे: बिलास खान, सुरतसेन, तानरस खान, हमीरसेन, सरस्वती देवी
तानसेन की पत्नी का नाम हुसेनी था,वह रानी मृगनयनी की दासी थी। तानसेन के चार पुत्र हुए- सुरतसेन, शरतसेन, तरंगसेन और विलास ख़ान तथा सरस्वती नाम की एक पुत्री थी.
एक बार अकबर ने तानसेन को दीपक राग गाने को कहा, तानसेन ने उन्हें बताया की दीपक राग गाने का परिणाम काफी बुरा हो सकता है। लेकिन अकबर ने उनकी एक न सुनी। अतः उन्हें यह राग गन पड़ा । उनके गाते ही गर्मी बढ़ने लगी और चारों ओर से मानो अग्नि की लपटें निकलने लगीं। श्रोतागण तो मारे गर्मी के भाग निकले , किन्तु तानसेन का शरीर प्रचंड गर्मी से जलने लगा । उसकी गर्मी केवल मेघ राग से समाप्त हो सकती थी । कहा जाता है कि तानसेन की पुत्री सरस्वती ने मेघ राग गाकर अपने पिता की जीवन-रक्षा की। बाद में अकबर को अपने किये पर काफी शर्मिंदा होना पड़ा।
ग्वालियर से लगभग 45 कि॰मी॰ दूर ग्राम बेहट में श्री मकरंद पाल के यहाँ तानसेन का जन्म ग्वालियर के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर हजरत मुहम्मद गौस के वरदान स्वरूप हुआ था। कहते है कि श्री मकरंद पाल के कई संताने हुई, लेकिन एक पर एक अकाल ही काल कवलित होती चली गई। इससे निराश और व्यथित श्री मकरंद पाल सूफी संत मुहम्मद गौस की शरण में गये और उनकी दुआ से सन् 1486 में तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर तानसेन के नाम से विख्यात हुआ। तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा मानसिंह तोमर का शासन था। उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र था, जहां पर बैजूबावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे और इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी। तब तानसेन भी वृन्दावन चले गये और वहां उन्होनें स्वामी हरिदास जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत शिक्षा में पारंगत होने के उपरांत तानसेन शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत ख़ाँ के आश्रय में रहे और फिर बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए। मुग़ल सम्राट अकबर ने उनके गायन की प्रशंसा सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुला लिया और अपने नवरत्नों में स्थान दिया।