Mahanagro mein badhta pradushan
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नगरों में बढ़ता प्रदूषण
नगरों-महानगरों के विकास के साथ इनका वातावरण भी दूषित हुआ है। गाँव-कस्बों की तुलना में नगरों की वायु मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक सिद्ध हो रही है। यह नगरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण हो रहा है। नगरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों में रोग बढ़ रहे हैं और उनका साँस लेना दूभर हो गया है। वास्तव में नगरों की बढ़ती जनसंख्या ने नगरों-महानगरों को कंकरीट के जंगल बना दिया है। नगरों के आस-पास हरियाली, पेड़-पौधे समाप्त होते जा रहे हैं।
आवास के लिए स्थान का इतना अभाव हो गया है कि दूर-दराज से आए लोगों ने जगह-जगह झुग्गी-झोंपड़ी बना ली हैं, जहाँ गंदगी का साम्राज्य पनप रहा है। नगरों-महानगरों में स्थित मिल-कारखानों से निकलने वाले विषैले धुएँ और गैस से भी प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों की बढ़ती संख्या ने भी नगरों को प्रदूषित कर रखा है। आज नगरों-महानगरों में प्रदूषण एक प्राणघातक समस्या बनी हुई है। वास्तव में प्रदूषण प्रकृति के विपरीत कदम बढ़ाने की प्रक्रिया से उत्पन्न होता है। प्राकृतिक वायु शुद्ध होती है और मनुष्य तथा अन्य जीव-जन्तुओं को जीवन प्रदान करती है। परन्तु नगरों में डीजल, पेट्रोल के वाहनों, मिल-कारखानों से निकलने वाले धुएँ ने वायु को दूषित कर दिया है। पेड़-पौधों से मनुष्य को जीवन प्रदान करने वाली ऑक्सीजन गैस मिलती है। परन्तु नगरों के विकास ने पेड़-पौधों को उजाड़कर वहाँ इमारतें खड़ी कर दी हैं।
नगरों में झुग्गियों की बढ़ती संख्या, जगह-जगह गंदगी के ढेर, अज्ञानी लोगों द्वारा इधर-उधर मल-मूत्र त्यागने आदि के कारण नगरों की भूमि भी प्रदूषित हो गयी है। मिल-कारखानों से निकलने वाले विषैले जल और लोगों द्वारा कूड़ा-कचरा फेंकने के कारण नगरों के आस-पास स्थित नदियों का जल भी प्रदूषित हो रहा है। वाहनों के हॉर्न, लाउड स्पीकर के शोर तथा अन्य कारणों से नगरों में ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ गया है। सच यही है कि प्रदूषण ने नगरों-महानगरों का जीवन नारकीय बना दिया है।