Hindi, asked by mdziahanhasib39, 9 months ago

महर्षि दयानंद ने कैसे समझा कि अंग्रेजों के पतन के दिन निकट आ रहे हैं​

Answers

Answered by vashistsaroj349
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Answer:

सवाल का जवाब स्वामी जी भी न दे पाए। नपुंसक गर्भ का कारण बताते हुए उन्हें कर्मफल की अवधारणा से हटना पड़ा। वह कहते हैं-

‘जो स्त्री के शरीर धारण करने योग्य कर्म हों तो स्त्री और पुरूष के शरीर धारण करने योग्य कर्म हों तो पुरूष के शरीर में प्रवेश करता है। और नपुंसक गर्भ की स्थिति समय स्त्री पुरूष के शरीर में सम्बन्ध करके रज वीर्य के बराबर होने से होता है।’ (सत्यार्थ.,पृ.171)

स्वामी जी ने औरत और मर्द का शरीर मिलने के लिए तो जीव के कर्म को ज़िम्मेदार माना है लेकिन नपुंसक शरीर मिलने के लिए जीव के कर्म के बजाय पति-पत्नी के रज-वीर्य को ज़िम्मेदार माना है। ऐसा मानना कर्मफल की अवधारणा के विपरीत तो है ही, जीव विज्ञान के प्रमाणित तथ्य के विपरीत भी है।

Answered by Arpita1678
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Explanation:

महर्षि दयानंद जी सूर्योदय से 1 घंटा पूर्व उठते थे। प्रातः संध्या आदि करने के बादभ्रमण के लिए बाहर निकलते और दौड़ते हुएअनेक स्त्री पुरुष उन्हें दिखाई देते थेकिंतु एक दिन उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि-बहुत से भारतीय स्त्री पुरुष भ्रमण करते दिखाई दिए इससे उन्होंने समझा कि-अब अंग्रेजों के पतन के दिन निकट आ गए हैं -क्योंकि इससे पहले इतनी सुबह कोई भारतीय भ्रमण करते दिखाई नहीं देते थे।

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