महर्षि वेदव्यास की जीवनी। Ved Vyas Biography in Hindi
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आपने ’महाभारत’ का नाम सुना होगा। ’महाभारत’ की कथाएँ अत्यधिक लोकप्रिय हैं। शायद आपने दूरदर्शन पर इसको देखा भी होगा। ’महाभारत’ जैसे महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास थे।
महर्षि वेदव्यास का जन्म यमुना नदी के किनारे एक छोटे से द्वीप में हुआ था। इनके पिता का नाम पराशर तथा माता का नाम सत्यवती था। व्यास के शरीर के रंग को देखते हुए इनका नाम कृष्ण रखा गया और द्वीप में पैदा होने के कारण इन्हें द्वैपायन कहा गया।
आरम्भ में वेद एक ही था। व्यास ने इसका अध्ययन किया। मंत्रों के आधार पर उन्होंने वेदों को चार भागों में वर्गीकृत किया जो ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के नाम से जाने जाते हैं। इस प्रकार ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद चार वेद हो गए। व्यास जी ने वेदों को नया स्वरूप दिया इसलिए वे वेदव्यास कहलाए।
महर्षि वेदव्यास विद्वान और तपस्वी थे। इनका सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ महाभारत है। महाभारत में 18 पर्व हैं। महाभारत को पाँचवाँ वेद भी कहा जाता है। महाभारत की रचना उन्होंने लोक कल्याण की भावना से की थी। कहा जाता है-
महाभारत को लिखने के लिए गणेश जी से कहा गया। गणेश जी ने कहा “मेरी एक शर्त है, मेरे लिखते समय मेरी लेखनी (कलम) रुकने न पाए, यदि यह रुक गई तो मैं लिखना बन्द कर दूँगा” व्यास जी ने कहा, ठीक है। उन्होंने इस तरह के श्लोक बोले कि जितनी देर में गणेश जी श्लोक को समझ करके लिख पाते उतनी देर में व्यास जी अगला श्लोक सोच लेते।
महाभारत के माध्यम से महर्षि वेदव्यास ने मनुष्य को सदाचार, धर्माचरण, त्याग, तपस्या, कर्त्तव्यपरायण तथा भगवान की भक्ति का सन्देश दिया है। इस ग्रन्थ द्वारा वेदव्यास जी ने यह बताया है कि मनुष्य कठिनाइयों का सामना किस प्रकार कर सकता है और उन पर विजय कैसे प्राप्त कर सकता है। महाभारत के वन पर्व में उन्होंने लिखा है-
“मनुष्य के पास सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख क्रमशः वैसे ही आते हैं, जैसे रथ के चक्के की तीली घूमती रहती है”।
महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को दिया गया उपदेश-
“तुम पुरुषार्थ के लिए प्रयत्नशील रहो, पुरुषार्थ के बिना केवल भाग्य के बल पर राजा उद्देश्य हीन हो जाता है। राजा आवश्यकतानुसार कठोरता और कोमलता का सहारा ले। राजा को अपने स्वार्थ के कार्यों का परित्याग कर देना चाहिए। उसे वही कार्य करना चाहिए जो सभी के लिए हितकारी हो”।
उस समय सभी व्यक्ति वेदों का पाठ नहीं करते थे। धीरे-धीरे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती गई। व्यास ने विचार किया कि बहुत संख्या में लोग भारत की संस्कृति से अनजान हैं। वेदव्यास ने पुराणों का संकलन किया और सभी के लिए सहज और सरल रूप में पुराणों की रचना की। महर्षि वेदव्यास की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं.
महाभारत, अठारह पुराण तथा वेदान्त दर्शन।
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।
अठारह पुराणों में व्यास जी के द्वारा दो महत्त्वपूर्ण बातें बतायी गयी हैं। परोपकार से पुण्य एवं दूसरों को पीडि़त करने से पाप की प्राप्ति होती है।
महर्षि सुपंच सुदर्शन
महाभारत काल में ही महर्षि वेदव्यास के साथ महर्षि सुपंच सुदर्शन का भी नाम लिया जाता है। वे एक वैष्णव सन्त थे। इनका जन्म लगभग 320 ई0 पू0 फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को वाराणसी में हुआ था। इनका बचपन का नाम सुदर्शन था। वे सुपंच के नाम से भी जाने जाते थे। सुपंच की शिक्षा-दीक्षा आचार्य करुणामय द्वारा हुई। इनका मन बचपन से ही भक्ति में अधिक लगता था। वे दैनिक क्रियाओं को करने के बाद घंटांे भजन और पूजा में लगे रहते थे। गुरु करुणामय ने उनके इस भाव को देखकर उन्हें ज्ञान, नीति एवं अध्यात्म की विशेष शिक्षा दी थी।
विद्या प्राप्त करने के बाद सुपंच सुदर्शन भक्ति और सत्य की खोज में लग गए। दीन, असहायों की सहायता और साधु सेवा को उन्होंने अपने जीवन का परम उद्देश्य बना लिया।
महर्षि सुपंच उच्च कोटि के सन्त थे। उन्होंने जो शिक्षाएँ दीं वे आज भी ग्रहण करने योग्य हैं-
ईश्वर से डरो इन्सान से नहीं।
बुद्धि, बल, रूप, सौन्दर्य, धन का घमण्ड मत करो।
सदैव दूसरों का उपकार करो।
स्वाभिमान की हर कीमत पर रक्षा करो।
संसार का सुख भोगने में ही मत लगे रहो।
पारलौकिक आनन्द की प्राप्ति का भी प्रयास करो।
महर्षि सुपंच सुदर्शन के आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण थे। इनका सारा जीवन परोपकार को समर्पित था। दीन, दुःखी व असहाय जन उनके पास शरण पाते थे।
महर्षि सुपंच सुदर्शन का आश्रम इटावा जनपद के पंचनदा टीले पर स्थित है।