maharishi dayanand dwara rachit kinhi 4 grantho ka naam likhae
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Among Maharshi Dayananda's contributions are his promoting of the equal rights for women, such as the right to education and reading of Indian scriptures, and his commentary on ...
vishu182:
write the names of granth
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स्वामी दयानन्द ने सन् 1863 में मथुरा में प्रज्ञाचक्षु दण्डी गुरु स्वामी विरजानन्द सरस्वती से विद्यार्जन पूरा कर अज्ञान के नाश व विद्या की वृद्धि सहित असत्य व अज्ञान पर आधारित धार्मिक, सामाजिक व राजधर्म सम्बन्धी मान्यताओं का खण्डन और सत्य पर आधारित मान्यताओं व सिद्धान्तों का प्रचार व मण्डन किया था। वह उपदेश, प्रवचन वा व्याख्यानों द्वारा प्रचार के साथ अपने सम्पर्क में आने वाले लोगों से वार्तालाप व शास्त्रार्थ भी करते थे। उन्होंने उन लोगों तक अपने सिद्धान्तों के प्रचार के लिए जो उनके उपदेशों में सम्मिलित नहीं हो सकते थे, अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया। ग्रन्थों का प्रणयन व प्रकाशन का एक कारण यह भी था, उनके जीवनान्त के बाद भी लोग उनके सत्य मन्तव्यों, विचारों सहित वैदिक सिद्धान्तों से लाभ उठा सकें। उनका साहित्य आज भी न केवल वैदिक मत के उनके अनुयायियों का मार्गदर्शन कर रहा है अपितु इससे अनेक गवेषक, शोधार्थी व अन्य मत के लोग भी लाभान्वित हुए हैं व हो रहे हैं। स्वामी जी ने बड़ी संख्या में ग्रन्थ लिखें हैं जिनमें प्रमुख हैं सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय आदि। इस लेख में हम उनके कुछ लघु ग्रन्थों की चर्चा कर रहे हैं जो उन्होंने अपने सार्वजनिक
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