महद भनुष्म की आमुसौ र्षव की भन जात है ,तो इतने र्षों तक र्ह स्र्स्थ यहकय ब्जए ,तब इस दीघव आमुकी
साथवकता है |‘ऩहरा सुि ननयोग कामा ’ कहार्त का अनुबर् प्रत्मेक व्मब्तत को आगे-ऩ छे होता ही है | कपय ब हभ
स्र्ास््म को फनाए यिने भें ऩूर्तव जागरूक नहीॊ यहते | कदाचचत हभाये ऩास तत्सॊफॊध ऩमावप्त जानकायी का अबार् औय
अभ्मास की रगन का अबार् होता है | शयीय को सशतत, सुगहित एर्ॊ ननयोग यिने के लरए प्रार्ामाभ फहुत राबप्रद है|
प्रार्ामाभ शलद का शाब्लदक अथव है --- ‘प्रार्’ औय ‘आमाभ’ अथावत ‘वर्स्ताय’| र्ास्तर् भें प्रार् स्थूर ऩ्ृर् ऩय र्स्तुका
सॊचारन कयता हुआ हदिाई देता हैऔय वर्श्र् भें वर्चाय रूऩ से ब्स्थत है|दसू ये शलदों भें ,प्रार् का सॊफॊध भन से ,भन का
सॊफॊध फुवि से औय फुवि का सॊफॊध आत्भा से औय आत्भा का सॊफॊध ऩयभात्भा से है | इस प्रकाय प्रार्ामाभ का उद्देश्म
शयीय भें व्माप्त प्रार्शब्तत को उत्प्रेरयत सॊचारन ,ननमलभत औय सॊतुलरत कयना है | मही कायर् है,कक प्रार्ामाभ को मोग
वर्ऻान का एक अभोघ साधन भाना गमा है |
भनुके अनुसाय ब्जसे प्रकाय अब्नन भें सोना आहद धातुएॉगरने से उनका भैर दयू होता है, उस प्रकाय प्रार्ामाभ कयने से
शयीय की इॊहिमों का भैर दयू होता है | ब्जस प्रकाय शयीय की शुवि के लरए स्नान की आर्श्मकता है , िीक उस प्रकाय
भन की शुवि के लरए प्रार्ामाभ की आर्श्मकता है |प्रार्ामाभ से शयीय स्र्स्थ औय ननयोग यहता है | इससे दीघव आमु
प्राप्त होत है, स्भयर् शब्तत फढ़त हैऔय भानलसक योग दयू होता petite gadyansh
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