महदेवी का िवरह भावना
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महादेवी की विरह वेदना में परम तत्व की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। उनके काव्य का मुख्य प्रतिपाद्य प्रिय से बिछुडना और उसे खोजने की आतुरता है। महादेवी जी ने अपने काव्य में आत्मा और परमात्मा के वियोग को विरहानुभूति के रूप में प्रस्तुत किया है।
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