Mahatma Buddh ke Sandesho se sambandhit Ek anuchchhed
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mahatma budh ke जीवन पर निबंध
इन दिनों हमारे चारों तरफ बहुत तनाव है। अधिकांश लोग कार्यालय में समस्याओं, रिश्तों में मुद्दों और विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बारे में शिकायत करते हैं। लोग इन मुद्दों से निपटने में इतने तल्लीन हैं कि वे जीवन की वास्तविक सुंदरता को नहीं देखते हैं। इन चीजों की तुलना में जीवन में बहुत कुछ है।
वास्तव में, यदि हम जीवन को करीब से देखें, तो हम महसूस करेंगे कि यह कितना सुंदर है। भगवान ने हमें हर चीज की बहुतायत दी है। यह स्पष्ट है जब हम प्रकृति को देखते हैं। पेड़, पौधे, नदियाँ और धूप – सब कुछ बहुतायत में है और यही ऊर्जा हमारे भीतर रहती है। यही जीवन का सौंदर्य है।
हालांकि, यह कहना नहीं है कि जीवन गुलाब का बिस्तर है। यह नहीं! लोगों की समस्याएं और चिंताएँ वास्तविक हैं। अमीर, गरीब, शिक्षित, अशिक्षित, सुंदर और इतने सुंदर नहीं – हर कोई समस्याओं के सेट पर है। जीवन किसी के लिए भी आसान नहीं है। हालांकि, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यह जीवन कैसा है।
अगर सब कुछ आसान हुआ तो हम वास्तव में इसकी कद्र नहीं करेंगे। जीवन अपने तरीके से सुंदर है और हमें इसका आनंद लेने के लिए कारणों की तलाश करनी चाहिए और उन मुद्दों के बीच अपनी सुंदरता को गले लगाना चाहिए, जिनसे हम निपट रहे हैं।
एकान्तवास में रहते हुए सिद्धार्थ संसार के रहस्य के प्रति तथा प्रकृति के कार्यों के प्रति जिज्ञासु हो गया था। वह सुख-सुविधाओं के प्रति कम विरक्ति के प्रति अत्यधिक उन्मुख और आसक्त हो चला था। सिद्धार्थ का जिज्ञासु मन अब और मचल गया। उसने बाहर जाने, देखने, घूमने और प्रकृति के पास से देखने की इच्छा प्रकट की। राजा शुद्धोदन ने उनकी यह इच्छा जान उन्हें राजभवन में लौट आने का आदेश दे दिया लेकिन राजभवन में लौटने पर सिद्धार्थ की चिन्तन रेखाएं बढ़ती ही चली गयीं। महाराजा शुद्धोदन को राज ज्योतिषी ने यह साफ-साफ कह दिया था कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर विश्व का सबसे बड़े किसी धर्म का प्रवर्त्तक बनेगा।
इस भविष्यवाणी से राजा शुद्धोदन सावधान हो गये। सिद्धार्थ कहीं संन्यासी या वैरागी न बन जाए, इसके लिए उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से किया गया। इनसे इन्हें एक बेटा उत्पन्न हुआ। उसका नाम राहुल रखा गया। राजसी ठाट-बाट, सुन्दर पत्नी का प्रेम व बेटे राहुल का वात्सल्य भी इनकी गंभीरता व उदासीनता को कम न कर सके। एक दिन सिद्धार्थ ने शहर घूमने की तीव्र इच्छा जतायी।
भगवान बुद्ध के अनुसार प्राणी का शरीर, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नामक चार महाभूतों का परिणाम है और उनका अलग होना ही मृत्यु है। अनेक तत्वों से मिली वस्तु अनित्य है। जो कुछ है वह प्रतिक्षण बदल रहा है। अनित्यता हमें आसक्ति के प्रति सचेत करके हमारे दुःखों को कम करती है। कर्म को मानव जीवन के नैतिक संस्थान का आधार मानना ही धर्म है। उनकी मान्यता थी कि कुशल कर्म करो ताकि उसे नैतिक कर्मों का सहारा मिले और उससे मानवता लाभान्वित हो। धर्म को समझने के लिए अधर्म की जानकारी होना भी जरूरी है। सधर्म के बारे में उनका कहना था कि मन के मैल को दूर करके उसे निर्मल बनाना ही सधर्म है। मन शुद्ध है तो शुद्ध वाणी निकलेगी और अच्छे कार्य होंगे।
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