Hindi, asked by jied5378, 1 month ago

mahatma gandhi aur नस्लभेद ki kahani

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Answered by sriakg
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पहली नज़र में देखें तो दक्षिण अफ्रीका का पीटरमारित्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन किसी गुज़रे ज़माने का लगता है.

ख़ाली प्लेटफॉर्म, 19वीं सदी की विक्टोरियन स्टाइल की लाल ईंटों वाली इमारत, ज़ंग खा रही जालियां और लकड़ी की बनी टिकट खिड़की, सब कुछ बहुत पुराना सा लगता है.

इस मामूली से स्टेशन को देखकर लगता ही नहीं कि ये वो जगह है जिसने हिंदुस्तान को बदल डाला और दुनिया की तारीख़ में एक नया पन्ना जोड़ दिया.

ये बात 7 जून 1893 की है. उस वक़्त युवा वकील रहे मोहनदास करमचंद गांधी रेलगाड़ी से डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे.

असल में वो अपने मुवक्किल दादा अब्दुल्लाह के काम से जा रहे थे. जब उनकी ट्रेन पीटरमारित्ज़बर्ग पर रुकी, तो ट्रेन के कंडक्टर ने उन्हें फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे से निकल जाने को कहा.

उस वक़्त दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन का पहला दर्जा गोरे लोगों के लिए रिज़र्व हुआ करता था.

जब ट्रेन से उतारे गए गांधी

ट्रेन के अंग्रेज़ कंडक्टर ने गांधी को निचले दर्जे के मुसाफ़िरों के डब्बे में जाने को कहा. जब गांधी ने कंडक्टर को अपना पहले दर्जे का टिकट दिखाया, तो भी वो माना नहीं और मोहनदास गांधी को बेइज़्ज़त कर के ट्रेन से ज़बरदस्ती उतार दिया.

गांधी

इमेज स्रोत,KALPANA SUNDAR

पीटरमारित्ज़बर्ग के प्लेटफॉर्म पर लगी एक तख़्ती ठीक उस जगह को बताती है, जहां पर गांधी को ट्रेन से धक्का देकर उतारा गया था. तख़्ती पर लिखा है कि, 'उस घटना ने महात्मा गांधी की ज़िंदगी का रुख़ मोड़ दिया.'

महात्मा गांधी ने वो सर्द रात पीटरमारित्ज़बर्ग के वेटिंग रूम में गुज़ारी थी, जहां पर गर्मी से बचने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं था.

इस घटना का ज़िक्र करते हुए गांधी ने अपनी आत्मकथा, 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में लिखा है कि, 'मेरे संदूक़ में मेरा ओवरकोट भी रखा था. लेकिन मैंने इस डर से अपना ओवरकोट नहीं मांगा कि कहीं मुझे फिर से बेइज़्ज़त न किया जाए.'

महात्मा गांधी बम्बई से 1893 में वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीय मूल के एक कारोबारी की कंपनी के साथ एक साल का क़रार किया था. ये कंपनी ट्रांसवाल इलाक़े में थी.

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