Hindi, asked by harsh753634, 1 year ago

Mahatma Gandhi ke vicharo ki prasangikta par nibandh 1000 shabdon ka​

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Answered by mauryapriya221
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महात्मा गांधी एक युग पुरूष थे। उन्होंने जहां एक ओर भारतवासियों में स्वाधीनता की भावना जागृृत की वहीं उनके सामाजिक जीवन को भी प्रवाहित किया तथा साहित्यकारों के प्रेरणा स्त्रोत भी बने। गांधी कोई दार्शनिक नहीं थे, वो एक सच्चे विचारक एवं सन्त थे, उनका सारा जीवन कर्ममय था, व्यक्तिगत साधना में उनका विश्वास था। उनके जीवन का लक्ष्य केवल अंग्रेजी सत्ता से छुटकारा दिलाना नहीं था, भारत और सारे विश्व का सत्य और अहिंसा के आदर्शों पर निर्माण करना था। गांधी जी ने पहली बार सत्य, अहिंसा और शत्रु के प्रति प्रेम के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धान्तों का राजनीति के क्षेत्र में इतने विशाल पैमाने पर प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की। गांधी ने जहां एक ओर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाई, वहीं दूसरी ओर संसार को अहिंसा का ऐसा मार्ग दिखाया, जिस पर यकीन करना कठिन तो नहीं पर अविश्वसनीय जरूर था।

दुनिया के करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले बापू के मोहनदास कर्मचन्द से राष्ट्रपिता बनने की उनकी यात्रा बेहद दिलचस्प ही नहीं वरन अचंभित कर देने वाली भी है। उनका ईश्वर और प्रार्थना पर अटूट विश्वास था। उनकी व्यक्तिगत मान्यता थी कि प्रार्थना के द्वारा हम अपने जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयां का दृढ़तापूर्वक सामना कर सकते हैं। क्योंकि सच्ची प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। हिन्दू, मुसलमान, ईसाई सभी की उपासना पद्धति भिन्न होने के बाद भी, वह है तो उसी परम सर्वशक्तिमान में श्रद्धा। मूर्ति पूजा में भी उनका यकीन था लेकिन वह अंध्विश्वास और पाखण्ड के खिलाफ थे। ईश्वर को गांधी जी ‘सत्चित्त आनन्द’ की संज्ञा देते थे, क्योंकि उसमें स्वयं सत्य का निवास है। गांधी जी ने जीवनपर्यन्त सत्य को सर्वोपरि माना। गांधी जी ने अपनी आत्म कथा में बताया है ‘‘जब मैं निराश होता हूं, तब मैं याद करता हूं कि इतिहास सत्य का मार्ग होता है, किन्तु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हत्यारे भी हुए हैं वह कुछ समय के लिए अपराजय लगते थे, किन्तु अंत में उनका पतन भी होता है- इसका सदैव विचार करें। मरने के लिए मेरे पास बहुत से कारण हैं, किन्तु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं हैं।’’

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि महात्मा गांधी ने राजनीति, समाज, अर्थ एवं धर्म के क्षेत्र में आदर्श स्थापित किये व उसी के अनुरूप लक्ष्य प्राप्ति के लिए स्वयं को समर्पित ही नहीं किया बल्कि देश की जनता को भी प्रेरित किया व आशानुरूप परिणाम भी प्राप्त किये। उनकी जीवन दृृष्टि भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। आज गांधी हमारे बीच नहीं हैं। किन्तु एक प्रेरणा और प्रकाश के रूप में लगभग उन सभी मुद्दों पर उनका मार्गदर्शन निरन्तर हमारे साथ है। जिसका सामना किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र को करना पड़ता है। इक्कीसवीं सदी में गांधी की सार्थकता प्रत्येक क्षेत्र में है। इस अहिंसावादी पुरूष के सिद्धान्तों के महत्व को समझकर ही संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्तूबर को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विश्व जिस विनाश के ज्वालामुखी पर खड़ा है उससे केवल गांधी जी ही बचा सकते हैं। उनकी क्षमता से प्रभावित होकर लार्ड माउण्टबेटन ने कहा था ‘‘जो काम 50 हजार हथियार बंद सेना नहीं कर सकी थी वह गांधी जी ने कर दिया। वे अकेले ही एक पूरी सेना हैं।’’ आज गांधी न सरल हैं और न जटिल हैं, आस्थाओं का यह युग पुरूष अपने ही देश में तलाशा जा रहा है। आतंक के साये में जी रहे सभी लोग न सत्य, न प्रेम और न अहिंसा से सरोकार रखते हैं यही हमारी कमजोरी है, यही हमारी विवशता है। श्री मन्नारायण के शब्दों में, ‘‘आज के मानव के सभी दुःखों को दूर करने की एकमात्र रामबाण औषधि गांधीवाद है।’’

Answered by dackpower
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महात्मा गाँधी के विचरो की प्रसंगिका

Explanation:

महात्मा गांधी एक गहन ज्ञान और मनोरम विनम्रता की भावना है, जो केवल एक लौह इच्छाशक्ति और अनम्य संकल्प और एक कमजोर व्यक्ति से लैस है, जो एक साधारण इंसान की गरिमा के साथ सैन्य ताकत की क्रूरता का सामना करता है। वह भगवान पर विश्वास करते थे। उनके अनुसार, हालांकि व्यक्तियों के शरीर अलग-अलग हैं, फिर भी एक ही आत्मा हम सभी में व्याप्त है। संक्षेप में, गांधीजी ने अनेकता में एकता का अनुभव किया और महसूस किया। उनके जीवन दर्शन में चार तत्व हैं- (1) सत्य, (2) अहिंसा (3) भय और (4)सत्याग्रह

गांधी जी का जीवन दर्शन आदर्शवाद के दर्शन पर आधारित है। उन्होंने आत्म-साक्षात्कार के अंतिम सत्य को प्राप्त करने के लिए सत्य, अहिंसा और नैतिक मूल्यों के आदर्शों की वकालत की। वह अपनी प्रकृति के अनुसार बच्चा है और वह एक व्यावहारिक व्यक्ति बन जाता है जब वह अनुभव करके और सीखकर सीखने की वकालत करता है। ये सभी एक एकीकरण की ओर ले जाते हैं, इसलिए कुल व्यक्तित्व के प्रभावी शिक्षा और विकास के लिए आवश्यक है।

गांधीजी एक शैक्षणिक दार्शनिक नहीं थे, लेकिन अपने स्वयं के अनुभवों के आधार पर वे उन दार्शनिकों में से एक हैं जो आत्म-बलिदान में विश्वास करते थे। उनके दर्शन में व्यक्तिगत और राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए उनके प्यार का बहुत स्पष्ट संकेत है। उनके पास एक बहुआयामी व्यक्तित्व था जिसमें स्पष्ट दृष्टि और समस्याओं के बारे में निश्चित दृष्टिकोण था जो देश में मौजूद थे। अहिंसा के गांधीजी दर्शन की वर्तमान परिदृश्य में बहुत प्रासंगिकता है। उनके अनुसार अहिंसा का अर्थ बुरे कर्ता की इच्छा के प्रति नम्र भाव रखना नहीं है।

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मेरे प्रीय नेता महात्मा गाँधी

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