Mahatma gandhi view on republic day in hindi on
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजादी के आंदोलन की अगुआई करते समय दो बार छिंदवाड़ा शहर में भी आए थे। 6 जनवरी सन् 1921 का दिन शहर और जिले के लिए इतिहास का पन्ना बन गया। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पहली बार छिंदवाड़ा आए थे। इसके १२ साल बाद 1933 में वे हरिजन उद्धार के देशव्यापी अभियान में फिर छिंदवाड़ा आए थे। बापू द्वारा अंग्रेज सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोनल का पहला पड़ाव छिंदवाड़ा था। दक्षिण अफ्रीका में गोरे-काले में भेद के बाद वे क्षुब्ध हो गए। भारत लौटकर उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली और अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने के लिए आंदोलन की भूमिका भी धीरे-धीरे बनाते रहे।
गांधीजी ने सभा ली थी
पश्चिम बुधवारी निवासी 60 वर्षीय चन्द्र मोहन राय बताते हैं कि उस समय उनके दादाजी हलके राय और उनके साथी गांधीजी को लेने पंहुचे थे। छितिया बाई का वाड़ा जो कहा जाता है वहां गांधीजी ने सभा ली थी। राय बताते हैं कि गांधीजी उनके घर आये और यहां स्वल्पाहार भी लिया। दादी बिनिया बाई से उन्होंने सुना है कि उस समय गांधीजी को देखने पूरा शहर और आस पास के गांव से छिंदवाड़ा लोग पँहुचे थे। चंदू राय के अनुसार गर्व होता है कि महापुरुष उनके यहां आये थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की रूपरेखा बनी
नागपुर में कांग्रेस के हुए सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि देश में साम्प्रदायिक सद्भाव बनाते हुए अंग्रेजी राज के खिलाफ आंदोलन शुरू किया जाए। इस तरह सविनय अवज्ञा आंदोलन की रूपरेखा बनी। महात्मा गांधी ने इसकी बागडोर सम्भाली और देश व्यापी भ्रमण नागपुर से ही शुरू किया। 6 जनवरी 1921 को बापू छिदंवाड़ा आए। यहां उन्होंने अली बंधुओं से मुलाकात की। अली बंधुओं ने यहां जामा मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसमें सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगों ने मदद की थी।
जामा मस्जिद में नमाज अदा की थी
नवनिर्मित जामा मस्जिद में उन्होंने नमाज अदा की। बापू अग्रवाल धर्मशाला में विश्राम के लिए रुके थे। सभा के लिए चिटनवीस गंज को चुना गया। शाम को यहां हुई सभा करीब दस हजार से ज्यादा लोग बापू को सुनने पहुंचे। यहीं पर राष्ट्रपिता ने महिलाओं से स्वराज फंड के लिए दान करने की अपील की और उस दिन यहां दो हजार पांच सौ रुपए एकत्रित हुए थे। बापू के आह्वान पर बड़ी संख्या में महिलाएं भी इस सभा में उपस्थित हुईं। बापू ने यहां लोगों से अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग करने और साम्प्रदायिक सद्भाव कायम कर हिंदू मुस्लिमों को एकसाथ रह आजादी के लिए संघर्ष करने की बात कही थी। बापू के आगमन की याद को हमेशा बनाए रखने के लिए इस क्षेत्र का नाम बदल दिया गया और आज वह गांधीगंज के नाम से जाना जाता है।
12 साल बाद बाद फिर छिंदवाड़ा आए
लगभग 12 साल बाद सन 1933 को गांधी फिर छिंदवाड़ा आए। इस समय तक को बापू पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ चुके थे और देश की स्वतंत्रता के लिए उनके एक आह्वान पर लोग आजादी के आंदोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर करने तैयार थे। उनके स्वागत में पूरा शहर सजाया गया और शोभायात्रा निकाली गई जो मुख्य मार्गों से होते हुए छितियाबाई के बाड़े में पहुंची थी। गांधी जी ने यहां सभा को सम्बोधित किया था। गांधीजी ने यह देशव्यापी दौरा छुआछूत के खिलाफ और हरिजन उद्धार के लिए किया था।
20 तोला चांदी के पानदान को किया नीलाम
बताया जाता है कि छिंदवाड़ा में भाषण की समाप्ति के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति आया और उसने महात्मा गांधी को चांदी का सुंदर नक्काशीदार पानदान भेंट की। इसमें गांधीजी की आकृति भी उकेरी गई थी। लगभग २० तोला वजनी इस पानदान को गांधीजी ने वहीं नीलाम कर इसकी राशि आंदोनल के फंड में देने की बात कही। शहर के अधिवक्ता गोविंदराम त्रिवेदी ने इसकी बोली पांच सौ रुपए लगाई। यह धरोहर उनका परिवार आज भी सम्भालकर रखा हुआ है।