Mahila bal vikas study material in hindi
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मध्यप्रदेश में 15 अगस्त, 86 को महिला एवं
बाल विकास संचालनालय का गठन किया
गया तथा महिलाओं एवं बच्चों से संबंधित
समस्त योजनायें आदिम जाति कल्याण
विभाग और पंचायत एवं समाज कल्याण
विभाग से इस संचालनालय को हस्तान्तरित
की गई। प्रारंभ में यह संचालनालय पंचायत एवं
ग्रामीण विकास विभाग के प्रशासकीय
नियंत्रण में रहा तथा वर्ष 1988 में पृथक से
महिला एवं बाल विकास विभाग का गठन
किया गया। वर्ष 2012 में विभाग अन्तर्गत
दो संचालनालय एकीकृत बाल विकास सेवा
संचालनलाय एवं महिला सशक्तिकरण
संचालनलाय का गठन किया गया।
महिला एवं बाल विकास विभाग के
हितग्राही समाज के कमजोर वर्ग, महिलाएं
और बच्चे हैं, जिनके विकास व कल्याण का
कार्य आसान एवं अल्प अवधि में पूरा होने
वाला नहीं है। विभाग की कई योजनाओं
का विस्तार हुआ हैं, वहीं लाडली लक्ष्मी
योजना,अटल बाल मिशन, समेकित बाल
संरक्षण योजना जैसी नई योजनाएं भी
संचालित की जा रही है। गतिशील रहते हुए
विभाग ने विकास के लिए प्रत्येक चुनौती
को स्वीकार किया है। उपलब्धि के आंकड़ें बड़े
नहीं है किन्तु समाज में महिलाओं की
स्थिति में निरंतर सुधार हुआ है, महिलाओं में
अपने अधिकारों व हितों के प्रति
जागरुकता आई है, बच्चों के कुपोषण में कमी
आई है।
बाल विकास संचालनालय का गठन किया
गया तथा महिलाओं एवं बच्चों से संबंधित
समस्त योजनायें आदिम जाति कल्याण
विभाग और पंचायत एवं समाज कल्याण
विभाग से इस संचालनालय को हस्तान्तरित
की गई। प्रारंभ में यह संचालनालय पंचायत एवं
ग्रामीण विकास विभाग के प्रशासकीय
नियंत्रण में रहा तथा वर्ष 1988 में पृथक से
महिला एवं बाल विकास विभाग का गठन
किया गया। वर्ष 2012 में विभाग अन्तर्गत
दो संचालनालय एकीकृत बाल विकास सेवा
संचालनलाय एवं महिला सशक्तिकरण
संचालनलाय का गठन किया गया।
महिला एवं बाल विकास विभाग के
हितग्राही समाज के कमजोर वर्ग, महिलाएं
और बच्चे हैं, जिनके विकास व कल्याण का
कार्य आसान एवं अल्प अवधि में पूरा होने
वाला नहीं है। विभाग की कई योजनाओं
का विस्तार हुआ हैं, वहीं लाडली लक्ष्मी
योजना,अटल बाल मिशन, समेकित बाल
संरक्षण योजना जैसी नई योजनाएं भी
संचालित की जा रही है। गतिशील रहते हुए
विभाग ने विकास के लिए प्रत्येक चुनौती
को स्वीकार किया है। उपलब्धि के आंकड़ें बड़े
नहीं है किन्तु समाज में महिलाओं की
स्थिति में निरंतर सुधार हुआ है, महिलाओं में
अपने अधिकारों व हितों के प्रति
जागरुकता आई है, बच्चों के कुपोषण में कमी
आई है।
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