Hindi, asked by indianking890, 11 months ago

Mahila ki paristi aaj kal

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Answered by rocky364
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Explanation:

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\huge\underline\mathcal\orange{AnSwEr }

जेंडर समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्‍यों और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है। संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है अपितु राज्‍य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्‍मक भेदभाव के उपाय करने की शक्‍ति भी प्रदान करता है।

लोकतांत्रिक शासन व्‍यवस्‍था के ढांचे के अंतर्गत हमारे कानूनों, विकास संबंधी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों में विभिन्‍न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्‍नति को उद्देश्‍य बनाया गया है। पांचवी पंचवर्षीय योजना (1974-78) से महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति कल्‍याण की बजाय विकास का दृष्‍ठिकोण अपनाया जा रहा है।

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\huge\underline\mathcal\pink{Thank \ You}

Answered by anilkapoor7990
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भारत के आजाद होने के बाद महिलाओं की दशा में काफी सुधार हुआ है। महिलाओं को अब पुरुषों के समान अधिकार मिलने लगे है। महिलाएं अब वे सब काम आजादी से कर सकती है जिन्हें वे पहले करने में अपने आप को असमर्थ महसूस करती थी। आजादी के बाद बने भारत के संविधान में महिलाओं को वे सब लाभ, अधिकार, काम करने की स्वतंत्रता दी गयी है जिसका आनंद पहले सिर्फ पुरुष ही उठाते थे। वर्षों से अपने साथ होते बुरे सुलूक के बावजूद महिलाएं आज अपने आप को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त पाकर और भी ज्यादा आत्मविश्वास से अपने परिवार, समाज तथा देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए लगातार कार्य कर रही है।

हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। इसका मतलब देश की उन्नति का आधा दारोमदार महिलाओं पर और आधा पुरुषों के कंधे पर निर्भर करता है। हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते उस समय का जब इसी आधी जनसँख्या को वे मूलभूत अधिकार भी नहीं मिल पाते थे जिनकी वे हक़दार है। उन्हें अपनी जिंदगी अपनी ख़ुशी से जीने की भी आजादी नहीं थी। परन्तु बदलते वक़्त के साथ इस नए ज़माने की नारी ने समाज में वो स्थान हासिल किया जिसे देखकर कोई भी आश्चर्यचकित रह जायेगा। आज महिलाएं एक सफल समाज सुधारक, उधमी, प्रशासनिक सेवक, राजनयिक आदि है।

महिलाओं की स्थिति में सुधार ने देश के आर्थिक और सामाजिक सुधार के मायने भी बदल कर रख दिए है। दूसरे विकासशील देशों की तुलना में हमारे देश में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर है। यद्यपि हम यह तो नहीं कह सकते कि महिलाओं के हालात पूरी तरह बदल गए है पर पहले की तुलना में इस क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है। आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति पहले से अधिक सचेत है। महिलाएं अब अपनी पेशेवर जिंदगी (सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक) को लेकर बहुत अधिक जागरूक है जिससे वे अपने परिवार तथा रोजमर्रा की दिनचर्या से संबंधित खर्चों का निर्वाह आसानी से कर सके।

महिलाएं अब लोकतंत्र और मतदान संबंधी कार्यो में भी काफी अच्छा काम कर रही है जिससे देश की प्रशासनिक व्यवस्था सुधर रही है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। उदाहरण के तौर पर मतदान के दिन मतदान केंद्र पर हमें पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की उपस्थिति नज़र आएगी। इंदिरा गाँधी, विजयलक्ष्मी पंडित, एनी बेसंट, महादेवी वर्मा, सुचेता कृपलानी, पी.टी उषा, अमृता प्रीतम, पदमजा नायडू, कल्पना चावला, राजकुमारी अमृत कौर, मदर टेरेसा, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि कुछ ऐसे नाम जिन्होंने महिलाओं की जिंदगी के मायने ही बदल कर रख दिए है। आज नारी बेटी, माँ, बहन, पत्नीं के रूप में अलग अलग क्षेत्र जैसे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, विज्ञान तथा और विभागों में अपनी सेवाएं दे रही है। वे अपनी पेशेवर जिंदगी के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही है। महिलाओं की दशा सुधारने में इतना सब होने के बाद भी हमे कहीं न कहीं उनके मानसिक तथा शारीरिक उत्पीड़न से जुडी ख़बरें सुनने को मिल जाती है।

भारत सरकार ने हाल ही में महिला सुरक्षा से संबंधित कानूनों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। पुराने जुवेनाइल कानून 2000 को बदलते हुए नए जुवेनाइल जस्टिस (चिल्ड्रेन केयर एंड प्रोटेक्शन) बिल 2015 को लागू किया है। इसे खास-तौर पर निर्भया केस को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इस कानून के अंतर्गत कोई भी किशोर जिसकी आयु 16 से 18 साल के बीच है और वह जघन्य अपराध में शामिल है तो उस पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जा सकेगी।

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