Hindi, asked by shaikhzahid178, 9 months ago

mai bharat bhumi bol rahi hu (aatmakatha)

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Answered by lokeshnath069
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Answer:

what is question in it

plzz tell then I'll answer it

plzz follow me nd mark me as a brainlist plzz plzz plzz plzz plzz

Answered by rinasingh1983
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तरुणा जोशी

मैं माता हूं, अपने बेटों की खुशहाली चाहती हूं। मेरी हैरानी-परेशानी का सबब आज का बदलता परिवेश है। मैं जानती हूं समय के साथ सब बदलता है और यही प्रकृति का नियम है। लेकिन यह बदलाव मेरे पुत्रों को पतन के रास्ते पर ले जाते दिखे तो दिल में पीड़ा होती है।
कभी मैं गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थी। मेरे सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगाकर मुझे उन कठोर जंजीरों से मुक्त किया। उस समय मैं खुलकर हंसी थी, चहकी थी, मेरी उन्मुक्त खिलखिलाहट चारों ओर फैल गई थी। मेरी आंखों में सुनहरे भविष्य के सतरंगी सपने तैरने लगे कि अब फिर से स्थितियां बदलेंगी। अब मेरा कोई बेटा भूखा और बेसहारा नहीं होगा। मेरी बेटियां फिर से अपने गौरव को पहचानेंगी और मान- सम्मान पा सकेंगी। मेरे नन्हे बच्चे अपने मजबूत हाथों से मेरे गौरवपूर्ण अतीत को भविष्य में बदलेंगे जैसी कि पहले मेरी ख्याति थी, वह मैं फिर से पा सकूंगी।


पर ये क्या.... मैं ये क्या देख रही हूं! ये मेरे नौनिहाल जिनके दम पर मैंने अपने मजबूत भविष्य के सपने संजोए हैं, इन्हें कुछ इस तरह समझाया गया है कि ये अपने पाठ्यक्रम को रटे-रटाए तरीके से पूरा करके अगली कक्षा में जाने को ही अपना भविष्य समझ बैठे। इन्हें समझाने वाले मेरे ही बेटों ने इनकी बुनियादी शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ये क्या हुआ....? सफलता का मापदंड भविष्य मैं ज्यादा से ज्यादा कमाना, बंगला, गाड़ी और बैंक बैलेंस बन गया।


आज मेरे नन्हे बच्चों के पास इतना समय नहीं कि वे स्वच्छंदता से कागज की नाव पानी पर तैरा सकें। मेरी मिट्टी में लिपटकर कर मेरे साथ खेलें और मैं भी चुपके उन्हें कुछ सिखा सकूं। आपाधापी के इस युग-संस्कृति ने उनके चेहरों से मासूमियत छीन ली, होमवर्क के बोझ ने उन्हें समय से पहले बड़ा बना दिया। बस्तों के बोझ ने उनकी स्वाभाविक लंबाई छीन ली।


स्वतंत्रता के बाद भी कुछ खास तो नहीं हुआ बल्कि मेरे बच्चे आपस में ही एक-दूसरे को लूटने पर आमादा हो गए। सच कहूं तो भ्रष्टाचार, और नैतिक पतन की इस बाढ़ मैं मुझे सब कुछ डूबता-सा नजर आ रहा है।


मुझे याद आता है अपना प्राचीन इतिहास और अपना उद्देश्य जिसके लिए मैं जानी जाती थी। मेरे बेटे कभी ऋषि कहलाते थे और जिसने सबको बनाया उसे ढूंढना ही उनका उद्देश्य होता था। मेरे वह बेटे ऐसा ज्ञान चाहते थे जिसे जानने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रहता। इसके लिए वे एकाग्रचित्त होकर अपने मन और इंद्रियों को अपने वश में करते थे। इसके बाद जब वे जगत को अपने अनुभवों के संदेश देते थे तो मैं गद् गद् और भावविह्वल हो उठती थी। मुझे उन पर गर्व था, लेकिन आज मेरे कुछ बेटों ने उन भावों को भी बेच दिया। इस मार्ग को भी आडंबरों में लपेट दिया।


काश! मेरे बच्चे फिर मुझे और मेरे प्राचीन को गौरव को समझ पाते। मुझे अब भी यह आशा है कि मेरे बेटे फिर से अपना अंतःकरण जगाएंगे और मैं फिर से अपने उसी रूप में जानी जाऊंगी। मेरे बेटो उठो! जागो! और तब तक संघर्ष करो जब तक तुम्हें भौतिक और आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाते। तुम सुन रहे हो न, हां मैं भारत माता बोल रही हूं।
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