Mai himalaya bol raha hu par nibandh
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मैं हिमालय कुछ बोल रहा हूं। अपने जीवन की गाथा बोल रहा हूं। यह धरती और यहां की वादियों की तरह मैं भी इस सुंदर पृथ्वी को सुंदर बनाने में योगदान दे रहा हूं।
कलकल करती नदियां बहती हुई मुझमें से सागर में मिलती है। हिमालय की गोद में खेल कूदकर न जाने कितने कवि बड़े हुए हैं।
कलकल करती नदियां बहती हुई मुझमें से सागर में मिलती है। हिमालय की गोद में खेल कूदकर न जाने कितने कवि बड़े हुए हैं।
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