main nark se bol rha hu कहानी को एकांकी मे बदले?
Answers
Answer:
मैं नर्क से बोल रहा हूं: हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना ।
Explanation:
भगवान् सोमनाथ श्मशान ही में रहते हैं. वही उनका निवास स्थान है; पर इस श्मशान में चिता-भस्म नहीं है. उनके स्थान में उनके एकान्त भक्त गुजरवासियों का हृदय-शोणित बह रहा है.
क्रमशः रजनी गम्भीर होने लगी. अन्धकार बढ़ने लगा. कमलावती अपने पिता की मृत-देह के लिए चिता रचकर भैरव के साथ फिर युद्ध-भूमि में आई. उस महाश्मशान में वह प्रेतनी के समान घूम रही है. पीछे-पीछे मशाल हाथ में लिए भैरव था. भैरव मृत-देहों के मुख के पास मशाल ले जाता था. फिर निराशा पूर्ण स्वर से कहता था-नहीं, नहीं ये कुमार नहीं हैं. वायु भी हताश होकर कहता था-नहीं ये कुमार नहीं हैं. उस श्मशान-क्षेत्र में स्थित वृक्षों के पत्ते भी कहने लगते-नहीं, ये कुमारसिंह नहीं है. चन्द्र-हीन अकाश-मंडल के तारे भी कह उठते थे-कुमारसिंह कहां हैं? उन्हें कहां खोजती हो? वे तो हमारे राज्य मे हैं कमलावती निराश होकर फिर दूसरा मृत देह की ओर जाती थी.
इसी समय उस अन्धकार-मय श्मशान-भूमि में दो मनुष्य का आकृति दीख पड़ी. मूर्तिद्वय, भैरव और कमलावती के समीप आए. कमलावती ने उन दोनों को पहचान लिया और भैरव ने भी. उनमें से एक शाह जमाल था और दूसरा रुस्तम.
कमलावती ने तिरस्कार-पूर्ण स्वर से कहा-शैतान, नराधम, तूने क्यों हमारा सर्वनाश किया? क्या हमारे आतिथ्य-सत्कार का यही पुरस्कार है?
शाह जमाल ने उस तिरस्कार का उत्तर न दिया. वह इस समय कमलावती की ओर स्थिर दृष्टि से देखता था. जिसके लिए आज उसने गुर्जर को प्रेत-भूमि कर दी है, उसे सामने खड़ी देखकर शाह जमाल उन्मत्त हो उठा. फिर विकृत स्वर से बोला-कमला! तुम यहां क्यों घूम रही हो? यह हम अनुमान से कह सकते हैं कि कदाचित तुम कुमारसिंह को मृत देह लेना चाहती हो; पर कुमार मरे नहीं हैं, आहत हैं और हमारे शिविर में बन्दी हैं. कमला हम कृतघ्न नहीं हैं. यदि तुम चाहो, तो हम अभी उन्हें स्वाधीन कर दें; पर इसके लिए मैं तुम्हें लेना चाहता हूं.
इसके बाद शाह जमाल उत्तेजित स्वर से कहने लगा-कमला, सुलतान तुम्हें बेग़म बनाना चाहते हैं और मैं तुम्हें अपनी हृदयेश्वरी, अपनी प्राणेश्वरी करना चाहता हूं. मैं ग़ज़नी का भावी सुलतान हूं; पर कमला तुम्हारे लिए मैं वह राज्य छोड़े देता हूं. मैं तुम्हें चाहता हूं. मैंने निश्चय कर लिया है कि अब मैं अफ़ग़ानिस्तान न लौटूंगा. इसी देश में एक कुटी बनाकर मैं तुम्हारे साथ सुख से रहूंगा. मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए. कमला, प्राणेश्वरी कमला! एक बार कहो, तुम मेरी हो.
इतना कहकर शाह जमाल कमलावती को आलिंगन करने के लिए दौड़ा. एकाएक पीछे से एक बन्दूक की आवाज़ आई. शाह जमाल आहत होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा. शीघ्र ही वह आघात-कारी सब के सम्मुख आया. उसे देख रुस्तम के आश्चर्य की सीमा न रही; क्योंकि वह स्वयं सुलतान महमूद था.
भू-पतित शाहज़ादे की ओर देखकर सुलतान बोला-शैतान, विश्वास-घातक! नफर, क्या इसीलिए मैंने तुझ पर इतना विश्वास किया था? मैंने तुझे क्या नहीं दिया? और फिर तूने मेरे ही साथ दग़ा की. महमूदाबाद में मैंने छिपकर तेरी बातें सुन ली थीं. एक सैनिक के वेष में मैं तेरे पीछे-पीछे यहां तक आया और यहां आज मैंने तुझे इस दग़ाबाज़ी के लिए पूरा पुरस्कार दे दिया.
यह कहकर सुलतान पीछे लौटा; देखा, वहां कमलावती और भैरव कोई नहीं हैं, रुस्तम खड़ा है. सुलतान ने पूछा-रुस्तम, ये दोनों कहां चले गए?
रुस्तम ने कहा-जहां पनाह, मैं कह नहीं सकता, कहां गए. मैंने ख़याल नहीं किया.
सुलतान-रुस्तम, तुम इस लाश को उठाकर मेरे पीछे-पीछे आओ.
रुस्तम शाह जमाल की लाश उठाकर सुलतान के पीछे-पीछे चला. शिविर में जाने से मालूम हुआ, कि कुमारसिंह भी न जाने कैसे छूटकर निकल गए! सुलतान ने कहा-रुस्तम, इस बार हम दुश्मनों को शिकस्त न कर सके. चलो फिर कभी देखा जाएगा.
सुलतान महमूद के लौट जाने पर कुमारसिंह ने कमलावती का पाणिग्रहण किया. कमलावती के पिता की भी यही अन्तिम इच्छा थी. कुमारसिंह उनके बाद गुर्जर के अधीश्वर हुए.