maithili sharan gupt poem bahara nekalana poem meaning in Hindi and English
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मातृभूमि ( मैथलीशरण गुप्त )
कवि के अनुसार हमारी मातृभूमि नीलाम्बर परिधान यानी नीले वस्त्र में जो आकाश है Iऔर धरती की हरियाली उनकी साडी है I आकाश और धरती मिलकर मातृभूमि का रंग नीला-और हरा है I दूर दूर तक सागर की लहरें अंतर्मन के चलने जैसी है I पूरी हरियाली भारत को समेटकर भारत्वास्सियों के कण कण में बसी हुई है I सागर रत्नों का खजाना है I हिमालय प्रहरी के रूप में अपनी उज्ज्वलता बिखरते रहता है I हे! जननी जन्मभूमि तुम धन्य हो तुम्हे कैसे नमन ना करूँ I हर जगह तुम्हारी कीर्ति छाई हुई है I जिसकी धूलि में हम लोट-लोटकर बड़े हुए हैं I आज भी इसी मात्र भूमि का अन्न जल खाकर तुम्हारे सामने खड़े हैं I तू सिर्फ माँ नहीं मातामही भी है I तुझे बार-बार नमन ,इसी देश की मिटटी में एक से एक गौरव गाथा छुपी है I जहाँ नर में राम और मिटटी में सीता दिखती है I जहाँ श्रवन कुमार जैसे पुत्र होते हैं I जहाँ सीता सावित्री और द्रौपदी जैसी सतियाँ उत्पन्न होती हैं I हे ! जननी -जन्भूमि तुझको शत-शत प्रणाम
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