मजदूर की आत्मकथा पर 8से 10 पंक्तीयाॅ लिखो
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मजदूर पर निबंध
मनुष्य जीवन परिस्थितियों का दास है. मनुष्य की आकांक्षायें बहुत होती हैं, परन्तु परिस्थिविश कभी-कभी उसकी सब आकांक्षाओं पर पानी फिर जाता है. कभी वह ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है जिसकी कि उसने कल्पना नहीं की थी. इस तरह जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं.
जीवन में परिवर्तन की बात सोचते-सोचते यकायक मेरा ध्यान एक मजदूर की ओर चला गया. आज से पांच वर्ष पहले वह और मैं एक कक्षा में पढ़ते थे उसके पिता एक किसान थे. खेती से अच्छी आमदनी होती थी. अच्छा खाता पीता परिवार था. भगवान के प्रकोपवश आज से चार वर्ष पहले उस गांव में बहुत बड़ी बाढ़ आई जिससे उनकी खेती-बाड़ी सब नष्ट हो गई. रहने का मकान भी नष्ट हो गया.
मकान के नीचे दबकर बैल भी मर गये. वे बेचारे बेघर-बार हो गये. कर्ज लेकर उसके पिता ने एक छोटा-सा मकान बनवा लिया. घर में खाने का दाना भी नहीं था. पेट भरने के लिए आधी जमीन गिरवी रखनी पड़ी. आधी से पूरे कुल का भरण-पोषण मुश्किल था. बड़ा परिवार और कम आमदनी इससे पूरा परिवार पेट भरने को भी मोहताज हो गया. लोगों ने उधार देना भी बन्द कर दिया. उस वर्ष फसल नष्ट हो गई और अपनी अगली फसल भी सर्दी के प्रकोप के कारण नष्ट हो गई.
अन्त में लाचार होकर वह छोटी उम्र में ही अपने दोस्तों के साथ मुम्बई गया. वहां जाकर उसने एक कपड़े की मिल में मजदूरी कर ली. इस प्रकार विधाता ने उसको एक मजदूर बनने पर विवश कर दिया. उसका जीवन एक मशीन बन गया है. सुबह जल्दी मिल जाना और शाम को घर आना और थकान के कारण घर आते ही सो जाना. उसकी व उसके परिवार की बड़ी ही दयनीय स्थति है.
सौ रूपये माहवार मजदूरी के मिलते हैं. उसके परिवार में पत्नी, चार लड़के व लड़कियां हैं. कुछ पैसे गांव में भेजकर घर वालों को भिखारी बनने और भूखे मरने से बचाता है. बेचारा कपड़े बना कर दूसरों को पहनाता है. परन्तु उसके शरीर को ढकने के लिए मैला-कुचैला एक मोटा कपड़ा है. अपने बच्चों को भी अच्छी तरह कपडे़ नही पहना सकता.
उसके जीवन में आशा और खुशियां नाममात्र को भी नहीं हैं. हमेशा चिंतित और गम्भीर अवस्था में बैठा हुआ भविष्य पर विचार करता रहता है. शायद उस बेचारे के जीवन में खुशी आयेगी ही नहीं और वह खुशी की कामना करता हुआ चिर शान्ति को प्राप्त कर लेगा.
मै एक मजदूर हु| मैने आपको मेरा नाम नही बताया इसलिये की मेरा नाम बताने से कुछ फायदा नही होने वाला, क्युंकी आप मुझे मेरे नाम से नही बल्की मेरे काम से पहचांते है| आपको मै बात बता देता हु की यह गरिबी है ना मेरे उपर एक अभिशाप है और यह अभिशाप अभी तक मेरे साथ ही चल रही है| उससे छुटकरा पाने का बहुत कोशिश की पर यश नही आया और आयेगा भी नही क्युकी आपकी तरह मै पढा लिखा नही हु ना, तो मै इस काम के शिवाय दुसरा काम नही कर सकता| इसपर आप सोचेंगे की भाई आपको पढाई करनी चाहिये थी ना, परंतु इसमे मेरी कुछ गलती नही है, मेरा परिवार इतना गरीब था की दो वक्त का खाना भी हमे नशीब नही था इसलिये मेरे साथ परिवार का पेट भरणे के लिये पिता के साथ मै भी मजदुरी करणे लगा और आजतक करता आ रहा हु |
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जीवन की इस दौड मे दुर्भाग्य हमारा ऐसा संबंधी बन गया है की यह हमारे साथ ही रहता है| हमे छोडने का नाम ही नही लेता| आज हमे इस दुर्भाग्य शब्दोसे घीन आती है, ना कोही साथ देता है, ना कोही बात करता है, ना कोही इज्जत देता है, करे तो क्या करे, इस गरिबी से इतना परेशान हुआ है ना लगता है आत्महत्या कर लु | परंतु क्या करू मेरी बिवी और बच्चोंका चेहरा सामने आता है तब सोचता हु की मेरे पीछे इनका क्या होगा, क्या खायेंगे, क्या पियेंगे,कैसे रहेंगे सोचकर भी पसीना आता है और डर भी लगता है|