"majdoor ke saath hota anyaay" par apne vichaar likhiye
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भारत में लॉकडाउन शुरू होने के हफ्तों बाद प्रवासी मजदूर घर वापस लौटने लगे हैं. उनके इन दिनों में जो अनुभव रहे हैं उनकी वजह से शायद ही वे जल्द काम पर लौटना चाहें. उनके अपने प्रदेशों में उनके भविष्य की कोई योजना नहीं है.
कोरोना महामारी के फैलाव और लॉकडाउन की लंबी अवधियों के बीच भारत में श्रमिकों के हालात और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान और श्रम रोजगार से जुड़ी राजनीतिक आर्थिकी के कुछ अनछुए और अनदेखे अध्याय भी खुल गए हैं. पहली बार श्रम शक्ति की मुश्किलें ही नहीं, राज्यवार उससे जुड़ी पेचीदगियां भी खुलकर दिखी हैं. एक साथ बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों का अपने घरों को लौटने के असाधारण फैसले के जवाब में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के पास कोई ठोस कार्रवाई या राहत प्लान नहीं दिखा, जिससे समय रहते हालात सामान्य हो पाते. प्रवासी मजदूरों के बीच जान बचाने और अपने घरों को लौट जाने की देशव्यापी दहशत के बीच सरकारों की मशीनरी भी असहाय सी दिखी.
गुजरात, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्य भले ही विकास के कई पैमानों पर अव्वल राज्यों में आते हों लेकिन अपने अपने घरों को बेतहाशा लौटते मजदूरों को रोके रखने के उपाय करने में वे भी पीछे ही रहे. हालांकि ये भी एक सच्चाई है कि भारत में प्रवासी मजदूरों की स्थिति विभिन्न राज्यों के असमान विकास के साथ जुड़ी हुई है. मजदूरों की मनोदशा के अलावा उन्हें काम देने वाले उद्यमों की जरूरत को भी समझने की जरूरत है. सच्चाई ये भी है कि सरकारें सहानुभूति दिखा सकती हैं लेकिन खर्च वही कर सकती हैं जो उनके पास है. राज्यों को इस तरह का विकास करने की जरूरत है कि उनके पास जरूरी कुशल मजदूर रहें, उन्हें उचित मजदूरी मिले और मजदूरों का कल्याण भी हो. अप्रैल में केंद्र सरकार ने गरीबों और जरूरतमंदों के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया था. लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों ने एक व्यापक वित्तीय पैकेज की मांग उठायी है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में एक कार्यबल का गठन कर दिया है.
majdoor din bhar kam karte hai or unke malik unhe aapne majdoori ki kimat nahi dete tab unke sath anyaay hota hai