मकानों को वातानुकूलन से ज्यादा प्रभावित करने के लिए क्या क्या किया जा सकता है?
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तापन (हीटिंग) और संवातन (वेंटिलेशन) युगों से भोजन और जीवन के साथ-साथ तापन की समस्या भी मनुष्य के मस्तिष्क को उलझाती रही है। शीत प्रदेशों में तो इसका महत्व है ही, अनेक उष्ण प्रदेशों में भी शीतकाल में तापन अनिवार्य हो जाता है। किंतु भोजन की भाँति इसके लिये मनुष्य को बाहर की ओर नहीं देखना पड़ा, क्योंकि यह शरीर स्वयं ही ऊष्मा का स्रोत है और यदि शरीर से निकलनेवाली ऊष्मा को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक उपाय कर लिए जाएँ तो मनुष्य की तापन समस्या हल हो जाती है।
तापन की सिद्धांत संपादित करें
मनुष्य उष्ण रक्तवाला प्राणी है। इसके शरीर का ताप अपेक्षाकृत ऊँचा (लगभग 37 डिग्री सें0) रहता है। शरीर को बनाए रखने कि लिये भोजन ईधंन का काम देता है। जब बाहर का ताप कम रहता है, तब शरीर से ऊष्मा का विकिरण होता रहता है। एक औसत दर्जे का स्वस्थ शरीर इतनी ऊष्मा निकालता है, जितनी 100 वाट का बिजली का बल्ब। कपड़ो से यह ऊष्मा हानि कुछ रूक जाती है। बहुत अधिक कपड़े पहनने से ऊष्मा की हानि उस गति से नहीं होती, जिस गति से वह उत्पन्न होती है। फलत: शरीर को कष्ट होता है, उसका ताप बढ़ जाता है और गड़बड़ी आ जाती है। यदि कपड़े बहुत कम पहने जाएँ तो जितनी ऊष्मा उत्पन्न होती है, उससे अधिक की होनि होती है, फलत: शरीर ठंढा होता जाता है और कष्ट होता है। वास्तव में किसी भी दशा में मानव शरीर को बाहरी ऊष्मा पहुँचाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अनेक परिस्थितियों में उन कमरों को ही उष्ण रखने की आवश्यकता होती है जो मानव के निवासस्थान है, ताकि शारीरिक ऊष्मा की हानि उतनी ही हो जितनी शरीर में उत्पन्न होती है।
अनुभव से ज्ञात हुआ है कि साधारण कपड़े पहने हुए सामान्य रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लिये घुटने भर ऊँचाई पर (फर्श से लगभग 45 सेंमी. ऊपर) 18.40 सें. का ताप सुखप्रद होता है। अनेक सामान्य तापन पद्धतियों द्वारा इतना ताप लाने में सिर के बराबर ऊँचाई पर (फर्श के लगभग 1.50 मीटर ऊपर) ताप लगभग 21.0 सें. हो जाता है। इतने पर भी शरीर से ऊष्मा की हानि होती ही रहती है, किंतु इतनी नहीं कि शरीर अत्याधिक शीतल हो जाए।
तापन व्यवस्था
संवातन
वातानुकूलन
मकानों को वातानुकूलन से ज्यादा प्रभावित करने के लिए निम्न उपाय किया जा सकता है
Explanation:
वातानुकूलन के कारण मकानों में आर्द्रता अधिक व तापमान कम बना रहता है जो कि रोगाणुओं के पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण होता है। वातानुकूलित मकानों में रोगाणुओं का स्रोत बाहर से प्रवेश करने वाली वायु होती है। मकानों की सफाई गीले पोंछे से करनी चाहिए जिससे कि धूल के उड़ने की कोई सम्भावना न रहे। अतः सावधानियाँ न रखी जाय तो वातानुकूलित मकानों में रहने वाले मनुष्य बहुत आसानी से संक्रामक रोगों के शिकार बन जाते हैं।