Hindi, asked by meho3430, 9 months ago

Makar vanariyo kahani in hindi

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Answered by kumarlucky5
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मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो किसी न किसी रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। पोंगल, बिहू, उत्तरायण जैसे इसके अनेक रूप हैं। इस दिन खिचड़ी बनाने की भी परंपरा है। कहते हैं यह शुरुआत गुरु गोरखनाथ ने की थी। जनश्रुति के अनुसार खिलजी के आक्रमण के समय संघर्ष कर रहे नाथ योगियों की भोजन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गोरखनाथ ने खिचड़ी का आविष्कार किया। खिचड़ी खाकर नाथ योगियों ने कड़ा संघर्ष किया और सैनिकों को अपने इलाके से भगाने में सफल रहे। यही वजह है कि मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

Answered by gchan1069
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मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो किसी न किसी रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। पोंगल, बिहू, उत्तरायण जैसे इसके अनेक रूप हैं। इस दिन खिचड़ी बनाने की भी परंपरा है। कहते हैं यह शुरुआत गुरु गोरखनाथ ने की थी। जनश्रुति के अनुसार खिलजी के आक्रमण के समय संघर्ष कर रहे नाथ योगियों की भोजन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गोरखनाथ ने खिचड़ी का आविष्कार किया। खिचड़ी खाकर नाथ योगियों ने कड़ा संघर्ष किया और सैनिकों को अपने इलाके से भगाने में सफल रहे। यही वजह है कि मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो किसी न किसी रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। पोंगल, बिहू, उत्तरायण जैसे इसके अनेक रूप हैं। इस दिन खिचड़ी बनाने की भी परंपरा है। कहते हैं यह शुरुआत गुरु गोरखनाथ ने की थी। जनश्रुति के अनुसार खिलजी के आक्रमण के समय संघर्ष कर रहे नाथ योगियों की भोजन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गोरखनाथ ने खिचड़ी का आविष्कार किया। खिचड़ी खाकर नाथ योगियों ने कड़ा संघर्ष किया और सैनिकों को अपने इलाके से भगाने में सफल रहे। यही वजह है कि मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है। सूर्य का यह परिवर्तन केवल भौतिक बदलाव भर नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक जागरण का सूत्र भी छुपा हुआ है। इसे बाहर निकालने के लिए आपको उन रूपकों को समझना होगा जिनके जरिए इसे दर्शाया गया है। यदि यह सूत्र आपने पकड़ लिया, तो मकर संक्रांति का त्योहार आपके भीतर चैतन्य की जागृति का पर्व बन सकता है। क्या है वह सूत्र?

मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो किसी न किसी रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। पोंगल, बिहू, उत्तरायण जैसे इसके अनेक रूप हैं। इस दिन खिचड़ी बनाने की भी परंपरा है। कहते हैं यह शुरुआत गुरु गोरखनाथ ने की थी। जनश्रुति के अनुसार खिलजी के आक्रमण के समय संघर्ष कर रहे नाथ योगियों की भोजन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गोरखनाथ ने खिचड़ी का आविष्कार किया। खिचड़ी खाकर नाथ योगियों ने कड़ा संघर्ष किया और सैनिकों को अपने इलाके से भगाने में सफल रहे। यही वजह है कि मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है। सूर्य का यह परिवर्तन केवल भौतिक बदलाव भर नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक जागरण का सूत्र भी छुपा हुआ है। इसे बाहर निकालने के लिए आपको उन रूपकों को समझना होगा जिनके जरिए इसे दर्शाया गया है। यदि यह सूत्र आपने पकड़ लिया, तो मकर संक्रांति का त्योहार आपके भीतर चैतन्य की जागृति का पर्व बन सकता है। क्या है वह सूत्र?मुंडकोपनिषद में आता है, ‘अंततः सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की। सत्य से देवयान मार्ग परिपूर्ण है। इसके द्वारा ही निष्काम ऋषिगण उस परमपद को प्राप्त करते हैं, जहां सत् स्वरूप के श्रेष्ठ भंडार-रूप परमात्मा का निवास है।’ हजारों वर्ष पुरानी वैदिक अवधारणा है कि जीवात्मा इस लोक से परलोक दो ही मार्गों से जाता है- पितृयान और देवयान। वस्तुतः पितृयान बार-बार संसार में आवागमन का मार्ग है, वहीं देवयान मुक्ति का पथ है। जो ज्ञानी देवयान से गमन करते हैं वे मोक्ष प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।

प्राचीन उपनिषदों में उत्तरायण को देवयान के रूपक के तौर पर उपयोग में लाया गया है। महाभारत में कथा आती है कि पितामह भीष्म शर-शैय्या पर लेटे-लेटे उत्तरायण की प्रतीक्षा करते रहे। उत्तरायण शुरू होने पर ही उन्होंने शरीर छोड़ा और देवताओं के मार्ग देवयान से गमन कर मुक्ति प्राप्त की। जिस उत्तरायण काल का इतना महत्व है, मकर संक्रांति का दिन उसका आरंभ है। अगर रूपक को गहराई से समझें तो पाएंगे कि यह पर्व देवयान का द्वार है जिसके माध्यम से आप ब्रह्मांडीय चेतना से तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं।

प्राचीन उपनिषदों में उत्तरायण को देवयान के रूपक के तौर पर उपयोग में लाया गया है। महाभारत में कथा आती है कि पितामह भीष्म शर-शैय्या पर लेटे-लेटे उत्तरायण की प्रतीक्षा करते रहे। उत्तरायण शुरू होने पर ही उन्होंने शरीर छोड़ा और देवताओं के मार्ग देवयान से गमन कर मुक्ति प्राप्त की। जिस उत्तरायण काल का इतना महत्व है, मकर संक्रांति का दिन उसका आरंभ है। अगर रूपक को गहराई से समझें तो पाएंगे कि यह पर्व देवयान का द्वार है जिसके माध्यम से आप ब्रह्मांडीय चेतना से तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं।वेदांत बार-बार परमात्मा को सत्य का रूप कहते हैं। सत्य का अर्थ है वह जो सत् हो, यानी जिसका अस्तित्व सदैव बना रहे। इसीलिए परमात्मा को सत्-चित्-आनंद कहा गया है- जिसका अस्तित्व सदा बना रहता है, जो चैतन्य है और आनंद स्वरूप hay..

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