Hindi, asked by sholtakapil95, 5 months ago

make an assignment on our tooth Hindi​

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Answered by supreethashetty
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Answer:

hamara danth to bahut muky ang hai

kyu ki ham kuch kayenge toh use hi ka sakthe hai

Answered by nraj26
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Answer:

दांत मुंह (या जबड़ों) में स्थित छोटे, सफेद रंग की संरचनाएं हैं जो बहुत से कशेरुक प्राणियों में पाया जाती है। दांत, भोजन को चीरने, चबाने आदि के काम आते हैं। कुछ पशु (विशेषत: मांसभक्षी) शिकार करने एवं रक्षा करने के लिये भी दांतों का उपयोग करते हैं। दांतों की जड़ें मसूड़ों से ढ़की होतीं हैं। दांत, अस्थियों (हड्डी) के नहीं बने होते बल्कि ये अलग-अलग घनत्व व कठोरता के ऊतकों से बने होते हैं।

मानव मुखड़े की सुंदरता बहुत कुछ दंत या दाँत पंक्ति पर निर्भर रहती है। मुँह खोलते ही 'वरदंत की पंगति कुंद कली' सी खिल जाती है, मानो 'दामिनि दमक गई हो' या 'मोतिन माल अमोलन' की बिखर गई हो। दाड़िम सी दंतपक्तियाँ सौंदर्य का साधन मात्र नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दाँत डेंटाईन के बने होते हैं।स्थायी दाँत

ये चार प्रकार के होते हैं। मुख में सामने की ओर या जबड़ों के मध्य में छेदक दाँत होते हैं। ये आठ होते हैं, चार ऊपर, चार नीचे। इनके दंतशिखर खड़े होते हैं। रुखानी के आकार सदृश ये दाँत ढालू धारवाले होते हैं। इनका समतल किनारा काटने के लिये धारदार होता है। इनकी ग्रीवा सँकरी, तथा मूल लंबा, एकाकी, नुकीला, अनुप्रस्थ में चिपटा और बगल में खाँचेदार होता है। भेदक दाँत चार होते हैं, छेदकों के चारों ओर एक एक। ये छेदक से बड़े और तगड़े होते हैं। इनका दंतमूल लंबा और उत्तल, शिखर बड़ा, शंकुरूप, ओठ का पहलू उत्तल और जिह्वापक्ष कुछ खोखला और खुरदरा होता है। इनका छोर सिमटकर कुंद दंताग्र में समाप्त होता है और यह दंतपंक्ति की समतल रेखा से आगे निकला होता है। भेदक दाँत का दंतमूल शंकुरूप, एकाकी एवं खाँचेदार होता है। अग्रचर्वणक आठ होते हैं और दो-दो की संख्या में भेदकों के पीछे स्थित होते हैं। ये भेदकों से छोटे होते हैं। इनका शिखर आगे से पीछे की ओर सिमटा होता है। शिखर के माथे पर एक खाँचे से विभक्त दो पिरामिडल गुलिकाएँ होती हैं। इनमें ओठ की ओरवाली गुलिका बड़ी होती है। दंतग्रीवा अंडाकार और दंतमूल एक होता है (सिवा ऊपर के प्रथम अग्रचर्वणक के, जिसमें दो मूल होते हैं)। चर्वणक स्थायी दाँतों में सबसे बड़े, चौड़े शिखरयुक्त तथा चर्वण क्रिया के लिये विशेष रूप से समंजित होते हैं। इनकी संख्या 12 होती है -- अग्रचर्वणकों के बाद सब ओर तीन, तीन की संख्या में। इनका शिखर घनाकृति का होता है। इनकी भीतरी सतह उत्तल और बाहरी चिपटी होती है। दंत के माथे पर चार या पाँच गुलिकाएँ होती हैं। ग्रीवा स्पष्ट बड़ी और गोलाकार होती है। प्रथम चर्वणक सबसे बड़ा और तृतीय (अक्ल दाढ़) सबसे छोटा होता है। ऊपर के जबड़े के चर्वणकों में तीन मूल होते हैं, जिनमें दो गाल की ओर और तीसरा जिह्वा की ओर होता है। तीसरे चर्वणक के सूत्र बहुधा आपस में समेकित होते हैं। नीचे के चर्वणकों में दो मूल होते हैं, एक आगे और एक पीछे।

दूध के दाँत

रचना की दृष्टि से ये स्थायी दाँत से ही होते हैं, सिवा इसके कि आकार में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। इनकी ग्रीवा अधिक सँकरी होती है। द्वितीय चर्वणक दाँत सबसे बड़ा होता है। इसके दंतमूल भी छोटे और अपसारी होते हैं, क्योंकि इन्हीं के बीच स्थायी दाँतों के अंकुर रहते हैं। दूध के चर्वणकों का स्थान स्थायी अग्रचर्वणक लेते हैं।

दाँतों की संख्या और प्रकार बताने के लिये दंतसूत्र का उपयोग होता है, यथाइसमें क्षैतिज रेखा के ऊपर ऊपरी जबड़े के दाँत और रेखा के नीचे निचले जबड़े के दिखाए हैं। शीर्ष में दाँई और बाँईं ओर वाले अक्षर—च, अ, भ और छ -- चर्वणक, अग्रचर्वणक, भेदक और छेदक प्रकार के दाँतों के तथा उनके नीचे के अंक उनकी संख्या के, सूचक हैं।

आदमी के दूध के दाँत 20 होते हैं, यथादूध के दाँत

नीचे के मध्य छेदक 6 से 9 मास,

ऊपर के छेदक 8 से 10 मास,

नीचे के पार्श्वछेदक 15 से 21 मास,

प्रथम चर्वणक 15 से 21 मास,

भेदक 16 से 20 मास,

द्वितीय चर्वणक 20 से 24 मास .......... 30 मास तक,

अर्थात्‌ छठे महीने से दाँत निकलने लगते हैं और ढाई वर्ष तक बीस दाँत आ जाते हैं। होल्ट ने लिखा है कि एक वर्ष के बालक में छ:, डेढ़ वर्ष में बारह और दो वर्ष में बीस दाँत मिलते हैं।

स्थायी दाँत

इनका कैल्सीकरण इस क्रम से होता है --

प्रथम चर्वणक : जन्म के समय,

छेदक और भेदक : प्रथम छह मास में,

अग्रचर्वणक : तृतीय या चौथे वर्ष,

दवितीय चर्वणक : चौथे वर्ष, और

तृतीय चर्वणक : दसवें वर्ष के लगभग।

ऊपर के दाँतों में कैल्सीकरण कुछ विलंब से होता है। स्थायी दंतोद्भेदन का समयक्रम इस प्रकार है :

प्रथम चर्वणक छठे वर्ष,

मध्य छेदक सातवें वर्ष,

पार्श्व छेदक आठवें वर्ष,

प्रथम अग्रचर्वणक नौवें वर्ष,

द्वितीय अग्रचर्वणक दसवें वर्ष,

भेदक ग्यारहवें से बारहवें वर्ष,

द्वितीय चर्वणक बारहवें से तेरहवें वर्ष तथा

तृतीय चर्वणक सत्रहवें से पच्चीसवें वर्ष।

छठे वर्ष, दूध के दाँतों का गिरना आरंभ होने तक, प्रत्येक बालक के जबड़ों में 24 दाँत हो जाते हैं -- दस दूध के और सभी स्थायी दाँतों के अंकुर (तृतीय चर्वणक को छोड़कर)।

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