Hindi, asked by s1264anand61016, 17 days ago

मम पदस्य विलोमपदम् किम् भवति​

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Answered by RakhiGole
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प्रस्तावना

प्रस्तुतः पाठः ‘चारुदत्तम्’ नाटकस्य प्रथमाङ्कात् सङ्कलितः। नाटकस्य नायकः चारुदत्तः अस्ति। सः उज्जयिनीवासी, रूपवान्, गुणवान् सङ्गीतविद्यायाः प्रेमी, परोपकारपरायणः च अस्ति।

चारुदत्तः पूर्वं धनवान् आसीत् परं सः उदारतावशदानकारणात् च शीघ्रं दरिद्रो जातः। दरिद्रावस्थायां मित्राणाम् उपेक्षायाः कारणात् कटुः अनुभवः भवति। किन्तु दैन्येऽपि तस्य मनः भ्रष्टं न भवति। मैत्रेयः अस्य मित्रम्। सः विनोदप्रियः विपत्तौ अपि तस्य विश्वासपात्रम्।

संस्कृत साहित्य में महाकवि कालिदास से भी पहले एक नाटककार हुए हैं। उनका उल्लेख कालिदास ने भी अपने एक नाटक में किया है। उनका नाम है-महाकवि भास। उनके तेरह नाटक मिलते हैं। उन नाटकों में बड़ी विविधता है। कथानक बड़े रोचक हैं। भाषा बहुत चुस्त है। नायक आदर्श चरित्र वाले हैं। इन नाटकों में एक का नाम है ‘चारुदत्तम्’। ‘चारुदत्तम्’ नाटक का नायक चारुदत्त है। पहले वह बड़ा धनवान् था। अपनी दानशीलता तथा उदारता के कारण वह शीघ्र ही दरिद्र हो जाता है। दरिद्रावस्था में उसके मित्र उसके पास नहीं फटकते, इस बात का उसको बड़ा कटु अनुभव होता है। ऐसा होने पर भी उसका मन डाँवाँडोल नहीं होता। दरिद्रता में भी उसका मन पूर्ववत् दृढ़ एवं उदार बना रहता है। यही दिखाने के लिए इस नाट्यांश को यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

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