Hindi, asked by ishapaul2115, 8 months ago

ममता को रोपा था तृष्णा को सीचा था पंकित का आशय सपशट

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Answered by renin34
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Answer:

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे,

सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,

रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी

और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा!

पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा,

बन्ध्या मिट्टी नें न एक भी पैसा उगला!-

सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये!

मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक

बाल-कल्पना के अपलर पाँवडडे बिछाकर

मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे,

ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था!

अर्द्धशती हहराती निकल गयी है तबसे!

कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने,

ग्रीष्म तपे, वर्षा झूली, शरदें मुसकाई;

सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे, खिले वन!

औ\' जब फिर से गाढ़ी, ऊदी लालसा लिये

गहरे, कजरारे बादल बरसे धरती पर,

मैंने कौतूहल-वश आँगन के कोने की

गीली तह यों ही उँगली से सहलाकर

बीज सेम के दबा दिये मिट्टी के नीचे-

भू के अंचल में मणि-माणिक बाँध दिये हो!

मैं फिर भूल गया इस छोटी-सी घटना को,

और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन!

किन्तु, एक दिन जब मैं सन्ध्या को आँगन में

टहल रहा था,- तब सहसा, मैने देखा

उसे हर्ष-विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!

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