Hindi, asked by sh8ashirbrusmeludu, 1 year ago

Man kya hai man ke stithi ke bare me bayaya

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Answered by mchatterjee
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मनुष्य कई अनुभवों से गुजरने के बाद ही जीवन की मूलभूत प्रवृत्ति को समझ पाता है। क्या है जीवन की यह मूलभूत प्रवृत्ति? वास्तव में जीवन बिलकुल वैसा नहीं होता, जैसा हम उसे तनाव व दबाव में महसूस करते हैं। जीवन जीव और वन दो शब्दों से मिलकर बना है। इसका तात्पर्य है कि वन में जो कुछ प्राकृतिक रूप में उपलब्ध है, उसी से मनुष्य को अपनी जीवनचर्या चलानी चाहिए। अब मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं के बीच रहता है, लेकिन यह सभी को उपलब्ध नहीं हैं। इस असंतुलन से ही समाज में समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसी परिस्थिति में दुख और अभाव झेल रहे मनुष्यों के सम्मुख स्वयं को भावनात्मक रूप से संतुलित करने की चुनौती होती है। मानव मन में दया भावना वह आदर्श स्थिति है, जो कितने ही संघर्षों के बाद भी पीड़ित व उपेक्षित मानवों को एक-दूसरे के प्रति प्रेम-अनुराग से बांधे रखती है।

ईश्वर के मुक्त हस्त से प्रकट मानव जीवन अपने नैसर्गिक स्वरूप में कहीं भी असंतुलित नहीं है। इस स्थिति में न कोई धनी है, न निर्धन। किसी का जीवन अभाव और पीड़ा में भी नहीं हो सकता। जब तक संसार में प्राकृतिक आपदा से उथल-पुथल न हो, तब तक मानव का जीवन सदा सुखी, आनंद बटोरने के लिए ही निर्धारित है। तब क्या कारण है कि आज का मनुष्य चिंता, अधीरता, रक्तचाप, परस्पर मतभेदों व विवादों से घिर कर जीवन को भावनात्मक रूप में संकीर्ण करने पर तुला हुआ है। हमें इस पतन से बचना चाहिए। इसके लिए हमें स्थान-काल-परिस्थिति का ध्यान रखते हुए अपनी प्रकृति प्रदत्त स्थिति को कम से कम वैचारिक व भावनात्मक रूप में तो अपनाना ही चाहिए।

मानव को प्रकृति से एक स्वाभाविक भावना प्राप्त है। वह है, दया भावना। अंतर्मन में दयालुता का भाव व्यक्ति को शांत प्रवाहित जल की तरह रखता है। दया भाव अपने मूल रूप में सदा विद्यमान रहे, हमारा यही प्रयास होना चाहिए। प्राकृतिक नियमों के अनुसार चलने वाले व्यक्ति के जीवन को बुरे, नकारात्मक भाव तथा वैचारिक आंदोलन से उपजी कुंठा स्पर्श भी नहीं कर पाती। जीवन में सभी बुरे कर्म वैचारिक रूप से आंदोलित, असंतुलित तथा विचलित रहने से ही प्रकट होते हैं। परंतु दयालु व्यक्ति का स्वभाव हर परिस्थिति में सम होता है। किसी भी विषय पर उसका वैचारिक पक्ष निःशेष होकर भावनात्मक स्वरूप धारण कर लेता है। दयावान व्यक्ति का भौतिक अस्तित्व स्वयं उसके लिए गौण रहता है। ऐसे व्यक्ति मात्र दया-भावना की शक्ति से संचालित होते हैं। जीवन के लिए, विशेषकर वर्तमान जीवन में दुर्गुणों, दुष्कर्मों, अनाचार आदि से बचने के लिए हमें दयालुता की वृत्ति अपनानी होगी। हम सबके भीतर दया-भाव का प्रकाश कभी खत्नम नहीं होना चाहिए।
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