Hindi, asked by tabasum4430, 9 months ago

मन ही पूजा मन ही धूप। मन ही सेंऊँ सहज सरूप।।"" का भाव स्पष्ट करें।

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Answered by sardarg41
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रैदास कहते हैं: मैंने तो एक ही प्रार्थना जानी—जिस दिन मैंने ‘मैं’ और ‘मेरा’ छोड़ दिया। वही बंदगी है - जिस दिन मैंने मैं और मेरा छोड़ दिया क्योंकि मैं भी धोखा है और मेरा भी धोखा है। जब मैं भी नहीं रहता और कुछ मेरा भी नहीं रहता, तब जो शेष रह जाता है तुम्हारे भीतर, वही तुम हो, वही तुम्हारी ज्योति है—शाश्वत, अनंत, असीम। तत्त्वमसि।! वही परमात्मा है। बंदगी की यह परिभाषा कि मैं और मेरा छूट जाए, तो सच्ची बंदगी।"—ओशो

Answered by Anonymous
4

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